प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज केदारनाथ में श्री आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया। आदि गुरू शंकराचार्य की मूर्ति 13 फीट लंबी है और इसका वजन 35 टन है।
आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के प्रसिद्ध चारों धाम और मठों की स्थापना की और सनातन धर्म के वैभव को बचाने के लिए और सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वैशाख मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को उनकी जयंती मनायी जाती है।
चार मठों की स्थापना करने के लिए जाना जाने वाले शंकराचार्य का जन्म केरल में ईसा पूर्व 8वीं शताब्दी में हुआ था। उन्होंने अलग-अलग मतों में बंटे हिंदू धर्मों को जोड़ने का काम किया।
हिंदू धर्म को एक सूत्र में पिरोने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। उन्होंने रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ, उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ, गुजरात के द्वारका में शारदा मठ, उत्तराखंड में ज्योतिर मठ की स्थापना की। ये चारों मठ भारत की चार दिशाओं में स्थित है। चार दिशाओं में चारो मठ के होने के पीछे ऐसी मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने भारत को एक सूत्र में बांधने का काम किया था।
केदारनाथ में 2013 में आये जल प्रलय के बाद आदि शंकराचार्य की मूर्ति को फिर से स्थापित किया गया है। यह मूर्ति मंदिर के पीछे स्थापित है। बताया जाता है कि शंकराचार्य ने केदारनाथ में ही अपनी समाधि ली थी। बता दें कि इस प्रतिमा की समस्त खासियतों में से एक यह है कि इस मूर्ति के निर्माण के लिए लगभग 130 टन एक ही शिला का चयन किया गया था। मूर्ति को तराशने के बाद इसका वजन लगभग 35 टन रह गया है। प्रतिमा के निर्माण के लिए 9 लोगों की टीम ने काम किया और सितंबर 2020 में मूर्ति बनाने का काम शुरू हुआ था। तकरीबन एक साल तक अनवरत कार्य चलने के बाद इस साल सितंबर महीने में मूर्ति को मैसूर से चिनूक हेलीकॉप्टर के द्वारा उत्तराखंड ले जाया गया। इस मूर्ति का निर्माण कृष्ण शिला (ब्लैक स्टोन ) से किया गया है। ब्लैक स्टोन का चयन इसलिए किया गया है ताकि इस पर आग ,पानी ,बारिश, हवा के थपेड़ों का असर ना हो। यह शिला किसी भी मौसम की मार सहने की क्षमता रखती है।
आदि शंकराचार्य की प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 12 फीट है, प्रतिमा निर्माण के दौरान शिला पर नारियल पानी का खूब इस्तेमाल किया गया जिससे प्रतिमा में वही चमक आ सके जो आदि शंकरचार्या में थी।