बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की तारीख का ऐलान होते ही राजनीतिक दल-बदल का सिलसिला भी शुरू हो गया है। गजब का खेल है यह भईया। ऐसे मौके पर तो विचारधारा गई तेल लेने। जिनसे थी दुश्मनी वो अब हैं दोस्त और दोस्ती की कसमें खाने वालों ने एक दूसरे पर तलवारें तान ली हैं। जीत के आगे सब फेल है तभी तो कोई नेता राजद से जदयू में तो कोई जदयू से भाजपा में तो कोई बसपा से राजद में। जी हां, क्षेत्रीय पार्टियों के नेता राजनीतिक लाभ और भविष्य के आधार पर पार्टियां बदल रहे हैं। आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) का दामन छोड़कर प्रदेश अध्यक्ष भरत बिंद (Bharat Bind) राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में शामिल हो गए हैं। भरत बिंद आज तेजस्वी यादव की उपस्थिति में राजद में शामिल हुए हैं। भरत बिंद के राजद में शामिल होने से बहुजन समाज पार्टी को तगड़ा झटका लग सकता है। अब देखिये ना। बिहार में चुनाव का ऐलान होते ही पार्टियों में पाला बदलने का खेल शुरू हो गया। आपको कब आरजेडी का मुख्य चेहरा जेडीयू के लिए बोलता दिख जाएगा, पता नहीं। बिहार में 243 सीटों पर हो रहे सियासी घमासान में दल बदलने का खेल पुरजोर जोर पर है।
नीतीश की सियासी खेल- कहलाए ‘पलटूराम’
बिहार की सियासी जमीन पर दल बदलने का सबसे बढिया खेल नीतीश कुमार ने खेला है। लालू और नीतीश की दोस्ती के साथ साथ उनकी कड़वाहट के किस्से भी बेहद मशहूर हैं। नीतीश ने कईयों बार लालू का दामन थामा और कई बार छोड़ा। 2015 के चुनाव में लालू और नीतीश की पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ी थीं। उन्हें जनता का भरपूर सहयोग मिला था और बड़ी जीत हासिल हुई थी। हालांकि लालू यादव सबसे ज्यादा सीट पाकर एक मुकद्दर का सिंकदर बन गये थे लेकिन कुछ ही दिनों में सब बदल गया। दरअसल, 2015 में बिहार में सत्तावापसी के बाद नीतीश और लालू यादव की पार्टी सरकार में थी। लेकिन दोनों के रिश्तों खराब होने लगे। नीतीश ने तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री के पद से हटने को कह दिया लेकिन लालू प्रसाद यादव अड़ गए कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देंगे। अगर नीतीश कुमार को अलग होना है तो हो जाएं। लालू अड़े रहे और तेजस्वी डिप्टी सीएम के पद पर डटे रहे. नतीजा फिर वही हुआ नीतीश ने लालू का साथ एक बार फिर छोड़ दिया और भाजपा से जा मिले। नीतीश के इस कदम से लालू यादव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने नीतीश कुमार को ‘पलटूराम’ तक कह डाला। तब लालू ने एक कॉर्टून को ट्वीट करते हुए लिखा था कि नीतीश को खुद नहीं मालूम कहां-कहां, कब-कब, क्यों, कैसे और किसलिए उन्होंने पलटियां मारी हैं?
श्याम रजक भी दलबदलूओं में एक
इस बार के दलबदलू नेताओं की बात करें तो श्याम रजक भी उनमें से एक हैं। श्याम रजक कुछ दिन पहले तक नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री थे। लेकिन चुनावी माहौल के साथ उनका मूड भी बदल गया। वो चुनाव से कुछ दिन पहले नीतीश कुमार के दुश्कोमन बन बैठे जिससे सरकार से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बस फिर क्या था, वो 11 साल बाद फिर लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी में वापसी कर गये। आपके बता दें कि रामकृपाल यादव और श्याम रजक की जोड़ी को राम-श्याम की जोड़ी के तौर पर जाना जाता है। दोनों ही एक समय में लालू प्रसाद से बेहद खास रहे, लेकिन समय के साथ रामकृपाल यादव ने जहां बीजेपी का दामन थाम लिया वहीं श्याम रजक जो 2009 तक आरजेडी में ही थे लेकिन फिर जेडीयू में चले गए थे अब वापस आरजेडी में हैं।
लवली आनंद एक पार्टी में नहीं टिकतीं
1990 के दशक के बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी हैं लवली आनंद। एक समय में बिहार की राजनीति में आनंद मोहन ता जलवा भी था और जलजला भी। कई खेमे बदलते-बदलते लवली आनंद अब अपने बेटे चेतन आनंद के साथ लालटेन उठा लिया है। जी हां वो आरजेडी में शामिल हो गई हैं। लवली आनंद अब नीतीश कुमार पर निशाना साध रही हैं और कहा है कि बिहार को बदहाली से बचाने के लिए वो आरजेडी से जुड़ी हैं।
रालोसपा भी दलबदलूओं से परेशान
उधर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बिहार के विकास की गंगा बहा देने को आतुर दिख रही है। एक ओर पार्टी नया मोर्चा बना रही थी तो दूसरी ओर उनके प्रदेश अध्यक्ष ने ही पार्टी को गुडबॉय कह दिया। इतना ही नहीं पार्टी के दूसरे बड़े नेता माधव आनंद भी पार्टी छोड़ गए। दोनों को ही लालू की लालटेन में ज्यादा रोशनी दिख रही है।
राम विलास पासवान कहलाए मौसम वैज्ञानिक
जी हां, आलम यह है कि बिहार में चुनाव से पहले कोई नीतीश की कैबिनेट छोड़ लालटेन की लौ को बचाने में जुट गया है तो कोई लालटेन से किनारा कर जेडीयू में भविष्य तलाश रहा है। वैसे भी चुनाव को लेकर यह कहावत बहुत ही मशहूर है कि नेता वहीं जो मौसम का हाल महचाने। मौसम से यहां मेरा मतलब चुनावी मौसम से है। तो बस विचारधारा से टकराव, आपसी मतभेद, राजनीतिक महत्वकाक्षाएं- आप इसे जो भी कह लें। बिहार के राजनीतिक पटल पर एक ऐसा नेता जिसके विरोधी भी कायल रहे- वो हैं राम विलास पासवान। उन्हें मौसम वैज्ञानिक के नाम से भी जाना जाता है। राम विलास पासवान के बारे में तो यह सही ही कहा जाता है कि वो चुनाव से पहले सियासी तापमान नाप और भांप लेते हैं। तभी तो हर चुनाव में वो जिस पाले में बैठते वहां सत्ता जरूर मिलती। दरअसल, लालू यादव ने रामविलास पासवान को सियासत के मौसम वैज्ञानिक का खिताब दिया था।