राजा भैया और समाजवादी पार्टी की मोहब्बत की कहानियां तो आपने खूब सुनी होंगी, लेकिन अब उनकी अदावत के किस्से मशहूर हो रहे हैं। कभी छोड़ेंगे न हम तेरा साथ का नारा बुलंद करने वाले राजा भैया को अखिलेश बिलकुल भी भाव नहीं दे रहे। राजा भैया चाहे मुलायम यादव को जन्मदिन की शुभकामनाओं के बहाने सपा से खुद के लगाव का संदेश जनता तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हों लेकिन अखिलेश को राजा भैया का साथ नहीं चाहिए। तभी तो देखिए सपा प्रमुख ने प्रतापगढ़ दौरे के दौरान यह कह डाला कि वो राजा भैया को नहीं जानते, वो कौन हैं।
पिछले दिनों सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर राजा भैया उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे। इसके बाद से राजनीतिक कयासबाजी का दौर चल रहा था। गठबंधन की चर्चाएं तेज हो गई थीं। अब अगर अखिलेश ने सपा सरकार में मंत्री रहे कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को यूं भुला दिया है तो मतलब साफ है, वो राजा भैया को ही नहीं, जनता को भी साफ संदेश दे रहे हैं। अखिलेश यादव ने तो सपा और राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के बीच गठबंधन को लेकर पूछे गए सवाल का भी अखिलेश ने जवाब देने से इनकार कर दिया। अखिलेश लगातार प्रदेश के छोटे दलों को साथ सपा को सत्ता तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब अखिलेश यादव के बयान ने साफ कर दिया है कि उनकी नाराजगी अब तक कम नहीं हुई है।
अब अगर उत्तर प्रदेश के सियासत की बात करें तो राजा भैया की अपनी अलग ही छवि है। मायावती से उनकी दुश्मनी तो जग जाहिर है लेकिन भाजपा और सपा दोनों दलों से उनके अच्छे रिश्ते हैं। राजा भैया कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन उनकी पहचान एक समाजवादी पार्टी के समर्थक के रूप में अधिक है।
बता दें कि सपा और राजा भैया के रिश्तों में दरार तब पड़ी थी जब समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया। इस बात पर राजा भैया की नाराजगी सामने आई थी। दरअसल, अखिलेश चाहते थे कि राजा भैया गठबंधन के तहत राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को वोट दें। लेकिन, उन्होंने मायावती के खिलाफ भाजपा प्रत्याशी को वोट दे दिया। लेकिन यह भी सही है कि राजनीति में न तो कोई पर्मानेंट दोस्त है, न ही पर्मानेंट दुश्मन।
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