8 अगस्त की तारीख, देश के हर बाशिंदे के लिए महत्व रखती है, क्योंकि इसी दिन से जुड़ी है हमारी स्वतंत्रता की कहानी। 8 अगस्त की तारीख Quit India movement day यानि भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के नाम से जानी जाती है, क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अगस्त 1942 में इसी दिन से बापू ने भारत छोड़ो आंदोनल की शुरुआत की थी, माना जाता है कि ये भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, आजादी कि इस क्रांति में बड़ी संख्या में देशवासियों ने हिस्सा लिया, यानि इस साल हम 79वां Quit India Movement day मना रहे हैं। आईये एक नजर इस आंदोलन की उन महत्वपूर्ण घटनाओं पर डालते हैं जिन्होंने आजादी की आधारशिला रखी।
भारत छोड़ों आंदोलन को मंजूरी 8 अगस्त 1942 को मिली लेकिन इस आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने वर्धा में 14 जुलाई 1942 को पारित किया, जिसके बाद 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालियां टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली। साथ ही ये घोषणा की भी कई कि देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र की स्थापना के लिए अंग्रेजी साम्राज्य का खात्मा बेहद जरूरी है।
दूसरे विश्वयुद्ध पूर्ण स्वराज की मांग के साथ शुरु किए गए इस आंदोलन में ये फैसला लिया गया कि भारत अपनी हिफाजत खुद करेगा और साम्राज्यवाद-फासीवाद का विरोध जारी रखेगा। अहिंसा पर आधारित इस आंदोलन के प्रस्ताव में कहा गया कि आजादी के बाद भारत फासीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ लड़ रहे देशों की तरफ से दूसरे विश्व युद्ध में शामिल होगा। भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के साथ ही महात्मा गांधी ने ग्वालियां टैंक मैदान से जनता को संबोधित करते हुए करो या मरो का नारा दिया, और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर करने के लिए सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरु करने का फैसला लिया।
बापू ने कहा,,,“ एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूँ। इसे आप अपने ह्रदय में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में उसे अभिव्यक्त करें। यह मंत्र है-“करो या मरो”। अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे।” गांधी जी के इस आह्वाहन के बाद अंग्रेजों भारत छोड़ो और करो या मरो, आंदोलनकारी भारतीयों के नारे बने।
इसके बाद रेलवे स्टेशनों, टेलिफोन दफ्तरों, सरकारी भवनों के साथ साथ विभिन्न स्थानों और उप निवेश राज के संस्थानों पर भारी हिंसात्मक घटनाएं शुरू हो गई। हिंसा व तोड़फोड़ की इन घटनाओं के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने गांधी जी को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी हुई, कांग्रेस को गैर स्वैधानिक संस्था घोषित कर पार्टी पर बैन लगाया गया और आंदोलन को दबाने के लिए सेना बुलाई गई, जिसके विरोध में देश के अलग अलग हिस्सों में हड़तालों और प्रदर्शनों का तांता लगा। पुलिस और जनता के बीच हिंसक झड़प हुई। अंग्रेजी हुकूमत ने आंदोलन से जुड़ी न्यूज पब्लिश करने को बैन कर दिया और बहुत से न्यूज पेपर्स ने अंग्रेजी हुकूमत के बैन को मानने की बजाय अखबार ही बंद कर दिए।
इस आंदलोन की प्रचंड आग में 1942 के अंत तक 60 हजार से ज्यादा लोगों को जेल भेजा गया, और प्रदर्शन के दौरान हुई कार्रवाईयों-झड़प व गोलीबारी में महिलाओं और बच्चों समेत हजारों लोगों की मौत हुई। इसी दौरान गरीबी के चलते बंगाल में भुखमरी फैली जिसमें 30 लाख लोगों की मौत हुई लेकिन ब्रिटिश सरकार ने भूख से तड़प-तड़प कर मर रहे लोगों को राहत व भोजन मुहैया कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ली।
कुल मिलाकर आजादी की लड़ाई के इस आखिरी दौर ने ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनौती खड़ी की, स्वत्रंत होने के लिए सिर उठाने वाले भारत के हर बाशिंदे में इस आंदोलन से आत्मनविश्वास तो बढ़ा ही, समानांतर सरकारों के गठन से भारत की जनता उत्साहित भी हुई और आजादी को आतुर भारतवासियों ने इस आंदोलन के जरिए अंग्रेजी हुकूमत की ज़ड़ों को झकझोर दिया। यहीं आंदोलन 5 बरस बाद मिली आजादी का सूत्रधार बना और 15 अगस्त 1947 को पराधीतना की बेड़ियां तोड़ भारत एक आजाद देश बना।
आजादी की गाथा लिखने वाला आखिरी सबसे बड़ा ये आंदोलन इतिहास के पन्नों में सुनहरे अंकों में दर्ज है। देश की आजादी के लिए हुए संग्राम में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले स्तंत्रता सेनानियों को, हर साल इस दिन श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके बलिदानों को याद किया जाता है।