किसी ने सच ही कहा है ज्ञान हासिल करने की कोई उम्र नहीं होती है, बस ललक और मेहनत ही काफी है। तभी तो 74वर्ष की उम्र में उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के जौहड़ी गांव की प्रकाशी तोमर भारत की 100 वूमन अचीवर्स की लिस्ट में शामिल हो गई हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा चुनी गई 100 भारतीय महिलाओं में दादी प्रकाशी तोमर का नाम शुमार हुआ है। मंत्रालय के द्वारा 100 महिलाओं को चुनने के लिए प्रतियोगिता को 20 कैटेगरी में बांटा गया था। प्रकाशी तोमर को स्पोर्ट्स वर्ग के तहत नॉमिनेट किया गया था। सोशल मीडिया फेसबुक पर लोकप्रियता के आधार पर प्रकाशी तोमर को चुना गया है।
इस प्रतियोगिता में चुनी गई महिलाओं का विशेष स्वागत 22 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में किया जाएगा। एक खास लंच पर ये महिलाएं राष्ट्रपति डॉ प्रणव मुखर्जी और महिला एवं बाल विकास मंत्री मनेका गांघी से मुलाकात करेंगी।
निशानची प्रकाशी दादी की कहानी काफी दिलचस्प है। पहली बार इन्होंने बंदूक उस उम्र में उठाया जब ज्यादातर लोग काम से रिटायरमेंट की सोच पालने लगते हैं। उनकी हिम्मत पस्त हो जाती है और झुर्रियां और बुढ़ापा उनके सामने खतरनाक चेहरा लेकर खड़ा हो जाता है। दादी का 60 की उम्र में बंदूक से सामना उस दौरान हुआ जब वो अपनी पोती शैफाली के साथ उसे शूटिंग की ट्रेनिंग दिलाने गांव के डॉ राजपाल की एकेडमी ले कर जाती थी। एक दिन शूटिंग के दौरान शैफाली को भारी पिस्टल को संभालना काफी मुश्किल हो रहा था तभी कोच ने दादी से निशाना साधने को कहा। बस फिर क्या था दादी का निशाना बिलकुल अचूक था।
उस अचूक निशाने को देख कोच भी हैरान रह गए और दादी को शूटिंग की प्रैक्टिस के लिए तैयार किया। दादी कहती हैं, “शुरूआत में तो काफी हिचकिचाहट हुई। मन में आया गांव वाले क्या कहेंगे लेकिन मैं और मेरी जेठानी दोनों के अचूक निशाने के कायल डॉ राजपाल ने हमें तैयार कर लिया”।
शुरू में दादी प्रकाशी सबसे चोरी छुपे प्रैक्टिस किया करती थी। यहां तक की घर के मर्दों को भी इसकी जानकारी नहीं थी। लेकिन एक दिन जब प्रैक्टिस के दौरान गांव के कियी पत्रकार ने बंदूक थामे उनकी तस्वीरें अखबार में प्रकाशित कर दीं तो यह बात जगजाहिर गो गई।
दादी कहती हैं, “जब यह बात हमारे बेटों को पता चली तो उन्होंने हमें और मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। बस फिर क्या था हम खुल कर खेले, फिर किसी की परवाह नहीं की हमनें”।
लेकिन गांव वालों ने इन बुढ़ी हड्डियों को उम्र का अहसास कराने की भरपूर कोशिश की। वो दोनों औरतों पर तरह तरह के व्यंग्य कसने लगे।“लोग तरह तरह से हमारा मज़ाक बनाया करते थे। लोग यहां तक कहते थे कि हम बुढ़ियां क्या बंदूक लेकर करगिल को युद्ध में शामिल होंगे। लेकिन हमने किसी की परवाह नहीं की। हमने ढान लिया था हमें बंदूक से खिलौने की तरह खेलना है चाहे कोई कुछ भी कहे,” दादी उन लम्हों को याद करके हंसने लगती हैं।
दादी का बेटा प्रमोद कुमार भारतीय सेना में कार्यरत है। इस बात को लेकर भी लोग मज़ाक उड़ाते थे। “गांव के लोग कहा करते थे दादी अपने बेटे को सेना से बुला कर घर पर बैठा लो और खुद ही बंदूक लेकर करगिल चली जाओ”।
हालांकि शुरूआत में दादी और उनकी 79 वर्षीय जेठानी चंद्रो तोमर दोनों को ही निशाना साधते वक्त हाथों में थरथराहट महसूस होती था जिससे निपटने के लिए उन्होंने अपने घेर में चोरी छुपे प्रैक्टिस शुरू कर दी। हर रात सबके सो जाने के बाद वो भूसे वाले कमरे में पानी भरे जग पर प्रैक्टिस करने लगी।
बस मेहनत, लगन और ललक ने अपना रंग दिखाया और दादी ने बंदूक पर अपना हाथ पूरी तरह साध लिया।
आज दादी प्रकाशी तोमर गांव की शान हैं, उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक लेकर गांव का नाम रौशन किया है। चंद्रो तोमर ने भी नार्थ इंडिया शूटिंग चैंपियन में दूसरे स्थान पर आकर गांव की लड़कियों को प्रेरित किया है। आज आलम यह है कि गांव की हर लड़की उनकी तरह हाथ में बंदूक थामने का सपना देख रही है।
प्रकाशी तोमर ना सिर्फ पूरे ज़िले में बल्कि भारत में भी बंदूक वाली दादी के नाम से भी मशहूर हैं। दादी आज प्रेरणा का स्रोत बन गांव की सैकड़ों लड़कियों को निशाना लगाना सिखा रही हैं। उनका कहना है, “लड़कियों को खूब बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वो किसी भी लिहाज़ से लड़कों से कम नहीं हैं”।