पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं रहे। आज उनका निधन हो गया। कई दिनों से पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी गहन कोमा में थे। 84 वर्षीय मुखर्जी को वेंटिलेटर पर रखा गया था और फेफड़े में संक्रमण का इलाज किया जा रहा था। जिसके बाद वह काफी समय से जीवन रक्षा प्रणाली पर थे।
आज सुबह ही अस्पताल की तरफ से बताया गया था कि फेफड़ों में संक्रमण की वजह से वह सेप्टिक शॉक में थे। मुखर्जी के निधन पर भारत सरकार ने 31 अगस्त से छह सितंबर तक सात दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है।
मुखर्जी के निधन की जानकारी उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने ट्वीट कर दी है।
‘‘भारी मन से आपको सूचित करना है कि मेरे पिता श्री प्रणब मुखर्जी का अभी कुछ समय पहले निधन हो गया. आरआर अस्पताल के डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों और पूरे भारत के लोगों की प्रार्थनाओं और दुआओं के लिए मैं आप सभी को हाथ जोड़कर धन्यवाद देता हूं.’’
प्रणब मुखर्जी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत तमाम हस्तियों ने दुख जताया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रणब मुखर्जी के साथ अपनी कुछ तस्वीरों को ट्विटर पर साझा किया है। एक तस्वीर में वह प्रणब दा का पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए दिख रहे हैं।
India grieves the passing away of Bharat Ratna Shri Pranab Mukherjee. He has left an indelible mark on the development trajectory of our nation. A scholar par excellence, a towering statesman, he was admired across the political spectrum and by all sections of society. pic.twitter.com/gz6rwQbxi6
— Narendra Modi (@narendramodi) August 31, 2020
राजनितिक सफर
प्यार से प्रणब दा कहलाने वाले, प्रणब मुखर्जी, 2012 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। ब्रेन से एक क्लॉट निकालने के लिए सर्जरी करवाने पहुंचे प्रणब दा को अचानक ही कोविड पोजिटिव होने की खबर मिली। स्वयं ही प्रणब दा ने देश को एक ट्वीट के माध्यम से बताया कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित हैं, अपने सभी करीबी लोगों को यह चेताया भी कि जो भी उनके संपर्क में आया जा वो खुद की जांच करा ले।
मुखर्जी के मस्तिष्क में खून के थक्के जमने के बाद उनका ऑपरेशन किया गया था। अस्पताल में भर्ती कराए जाने के समय वह कोविड-19 से भी संक्रमित पाए गए थे। इसके बाद उन्हें श्वास संबंधी संक्रमण हो गया था।
एक बेहद सधे, मंझे वक्ता थे प्रणब मुखर्जी, एक स्कॉलर, एक अनुभवी राजनितिज्ञ थे वो। देश के तेरहवें राष्ट्रपति चुने जाने से पहले प्रणब दा कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे। 1984 में यूरो मनी मैग्ज़ीन ने एक सर्वे में प्रणब मुखर्जी को दुनिया का सर्वोत्कृष्ट वित्त मंत्री माना।
राष्ट्रपति के रूप में ही उन्होंने राष्ट्रपति के संबोधन के लिए महामहिम शब्द को हटाए जाने की बात कही।
अगर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक अनुभव की बात करें तो उन्हें 1969 से पांच बार संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए और 2004 से दो बार संसद के निम्न सदन (लोक सभा) के लिए चुना गया.
उनका संसदीय कैरियर करीब पाँच दशक पुराना है, जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्य सभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था जब भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीं ने कांग्रेस के टिकट पर उन्हें राज्य सभा तक पहुंचाया। अपनी राजनीतिक सूझबूझ और समझ के कारण वो जल्द ही इंदिरा गांधी के सबसे विश्वसनीय और करीबी सलाहकारों में शामिल हो गये। 1973 में उन्हें कबिनेट में शामिल किया गया। 1975. 1981, 1993 और 1999 में वो राज्य सभा सांसद रहे।
कांग्रेस में उनका दर्जा काफी महत्वपूर्ण रही लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनकी इस भूमिका पर विराम लग गया। इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी ने उन्हें किनारा कर दिया। बुझे मन से लग हो कर उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस दल का गठन किया जिसका 1989 में कांग्रेस में विलय हुआ।
राजीव गांधी की हत्या के उपरांत, प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर में फिर नया मोड़ आया। पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहा राव ने 1991 में उन्हें भारतीय योजन आयोग के उपाध्यक्ष और 1995 में विदेश विषयक मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी।
उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री होने का गौरव भी हासिल है। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे।
मुखर्जी की अमोघ निष्ठा और योग्यता ने ही उन्हें यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के करीब लाया और इसी वजह से जब 2004 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी तो उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर पहुँचने में मदद मिली।
सोनिया गांधी को सक्रीय राजनीति से जोड़ने में प्रणब मुखर्जी की भूमिका बेहद अहम रही। वर्ष 2004 में प्रणब मुखर्जी ने पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ा और यूपीए सत्ता में आई। लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी बाई-पास सर्जरी कराई, प्रणव दा विदेश मन्त्रालय में केन्द्रीय मंत्री होने के बावजूद राजनैतिक मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष और वित्त मन्त्रालय में केन्द्रीय मन्त्री का अतिरिक्त प्रभार लेकर मन्त्रिमण्डल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गैरमौजूदगी में एक सधे प्रशासनिक और मंझे राजनीतिज्ञ मुखर्जी कैबिनेट मीटिंग्स की अध्यक्ष्ता किया करते थे।
मैन ऑफ ऑल सिजंस के तौर पर मशहूर प्रणब मुखर्जी की भूमिका विवादित भारत-अमेरिका न्यक्लियर डील में बहुत अहम रही।
10 अक्टूबर 2008 को प्रणब मुखर्जी और अमरिकी विदेश सचिव कोंडोलिज़ा राइस ने धारा 123 समझौते पर हस्ताक्षर किए।
प्रणव मुखर्जी, भारत के साथ साथ बांग्लादेश में भी खूब लोकप्रिय हैं। अपने राजनीतिक सफर में प्रणव मुखर्जी बेहद सरल, सुलझे और मिलनसार नजर आते हैं लेकिन प्रणब मुखर्जी दया याचिका खारिज करने के मामले में सबसे सख्त भी नज़र आये जो इन्हें सबसे अलग बनाता है। इस मामले में उनकी छवि एक कठोर राष्ट्रपति के रूप में रही। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 97 फीसदी दया याचिकाएं ख़ारिज की है.
भारत सरकार ने वर्ष 2008 में पद्म विभूषण, 26 जनवरी 2019 को प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
उनकी लिखी किताब ‘द कोलेशन ईयर्स: 1996-2012’ काफी लोकप्रिय रही।