देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का आज (रविवार) सुबह निधन हो गया। 82 वर्षीय, जयवंत सिंह लंबे समय से बिमार थे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे जसवंत सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत राजनीति जगत की कई दिग्गज हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है।
पीएम मोदी ने ट्वीट किया, ‘जसवंत सिंह जी को राजनीति और समाज के मामलों पर उनके अनूठे दृष्टिकोण के लिए याद किया जाएगा. उन्होंने भाजपा को मजबूत बनाने में भी योगदान दिया. मैं हमेशा हमारी बातचीत को याद रखूंगा. उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना.’
एक लंबे समय तक बीजेपी के साथी रहे जसवंत सिंह हमेशा से भाजपा के लिए एक ढाल के रूप में रहे। अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के समय तो इन्हे पार्टी का हनुमान भी कहा जाता था।
जसवंत सिंह 1960 में सेना में मेजर के पद से इस्तीफा देकर राजनीति के मैदान में उतरे थे और अपनी छाप छोड़ गये। अगर 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण की बात करें तो उस दौर में जसवंत सिंह ने ही भारत को आर्थिक प्रतिबंधों के जाल में निकाला था।
राजस्थान ने बाड़मेर जिले के एक गांव जसोल में जन्में जसवंत ने अजमेर के मेयो कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और फिर सेना के प्रति समर्पित हो गये। अटल सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री के साथ कपड़ा मंत्री भी रहे।
जसवंत ने राज्यसभा और लोकसभा, दोनों सदनों में बीजेपी का प्रतिनिधित्व किया। बतौर वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने स्टेट वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) की शुरुआत की और कस्टम ड्यूटी भी घटा दी थी।
1980 में पहली बार राज्यसभा जाने वाले जसवंत सिंह 1996 में अटल सरकार में वित्त मंत्री बने। दो साल बाद फिर जब दोबार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्रालय सौंपा गया। पाकिस्तान के साथ भारत के बिगड़े रिश्तों को सुधारने के लिए वो लगातार प्रयासरत रहे। साल 2000 में उन्होंने रक्षा मंत्री का पद भी संभाला और फिर दो साल बाद 2002 में वह फिर से वित्त मंत्री बनाये गये।
जयवंत सिंह की आलोचना उस वक्त बहुत हुई जब वाजपेयी सरकार में 24 दिसंबर 1999 को भारतीय एयरलाइन्स के विमान को आतंकियों ने हाइजैक कर लिया। IC-814 विमान को आतंकी कंधार ले गए और यात्रियों को बचाने के एवज में सरकार को तीन आतंकी छोड़ने पड़े थे। जसवंत इन आतंकियों को लेकर कंधार गए थे जिस कारण उन्हें विपक्षी दलों समेत देशवासियों का गुस्सा भी झेलना पड़ा था।
जसवंत 2009 तक राज्य सभा में विपक्ष के नेता रहे और गोरखालैण्ड के लिए संघर्ष करने वाले स्थानीय दलों की पेशकश पर दार्जिलिंग से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की।
वर्ष 2012 में बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया था पर यूपीए कैंडिडेट के सामने उनकी जीत नहीं हो सकी। ।
एक चहेते राजनेता के रूप में अपनी छवि बनाने वाले जसवंत बेहद मुखर व्यक्तित्व के थे। उनकी लिखी किताब ‘जिन्ना- -इंडिया, पार्टिशन, इंडेपेंडेंस’ में जिन्ना की तारीफ को लेकर वो विवादों से भी घिरे। नेहरू और पटेल की आलोचना और जिन्ना की तारीफ के बोल बोलने वाले जसवंत को पार्टी ने 2009 में बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें बाड़मेर से सांसद का टिकट तक नहीं दिया। जिसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 2014 में ही सिर पर गंभीर चोटें लगने से वह कोमा में थे।