प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रीमंडल में व्यापक फेरबदल के एक सप्ताह के भीतर मंगलवार को अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री डॉ नजमा हेपतुल्ला से इस्तीफा ले लिया। नजमा की छुट्टी इसलिए की गई है क्योंकि वो 75 वर्ष से अधिक आयु की हो चुकी हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि नजमा को राज्यपाल बनाया जा सकता है या भाजपा में जल्द ही होने वाले सांगठनिक फेरबदल में दायित्व दिया जा सकता है।इसे नजमा के राजनीतिक सफर में एक पड़ाव के रूप में भी देखा जा रहा है।
वैसे तो डॉ नजमा हेपतुल्ला अपनी राजनीतिक सफर के लिए मशहूर हैं लेकिन उनके अंदर एक कलाकार भी छुपा है जिससे ज्यादातर लोग अनजान हैं और हो सकता है आने वाले समय को नजमा कला के माध्यम से उपयोगी बनाएगीं या फिर कविताएं रचने में उनकी रूचि और जागेगी।
राजनीति और कलात्मक क्रियाओं के बीच बेजोड़ तालमेल बैठाने वाली डॉ हेपतुल्ला के जीवन में कला के लिए एक खास जगह है। वो कहती हैं, “कला हमें रोज़ के तनाव से मुक्ति दिलाने के एक सशक्त माध्यम है। यह हमें आनंद और उत्साह से भर देता है”।
सौम्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी डॉ हेपतुल्ला का नाम उन महिला राजनीतिज्ञों में लिया जाता है जिन्हें राजनीति विरासत में जरूर मिली लेकिन मुकाम हासिल अपने दम पर किया है। रिश्ते में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की नातिन डॉ हेपतुल्ला का जीवन किसी भी महिला के लिए प्रेरणादायक हो सकता है।
डॉ हेपतुल्ला जितनी शिद्दत से राजनीति के मामलों और पेचिदगियों को सुलझाती रही हैं उतनी ही खूबसूरती से वो कुशल गृहणी का फर्ज़ निभाती हैं। आपको यह जान कर ताज्जुब होगा कि डॉ हेपतुल्ला एक बेहद कुशल कलाकार हैं। कभी उन्हें पेंट ब्रश के साथ कपड़ों पर खूबसूरत पेंटिंग्स करते देखा जा सकता है तो कभी उनके हाथों में ऊन औऱ सिलाईयां देखी जा सकती हैं।
टेक्नॉलजी और आधुनीकिकरण के इस युग में भी डॉ हेपतुल्ला में कला और संस्कृति के प्रति लगाव देखी जा सकती है। राजनीति की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में भी अपने शौक के लिए वो समय निकालती रही हैं। वो कहती हैं, ‘कुछ लोग इसलिए सिलाई कढ़ाई जैसे काम नहीं करते हैं ताकि ऐसा ना लगे कि सीरियस नहीं हैं वो पॉलीटिक्स में। ऐसा गलत है। मैं एक औरत हूं और मुझे औरत होने पर गर्व है। मैं एक पुरूष नहीं बनना चाहती। मैं सिलाई करती हूं, खाना बनाती हूं, मैं क्रोशिया करती हूं और मैं बुनाई भी करती हूं। मेरे लिए यह सब एक योग्यता है।‘
कला के प्रति अपने लगाव के बारे में डॉ हेपतुल्ला कहती हैं, “कला का अर्थ अलग अलग व्यक्तियों के लिए अलग अलग है। मेरे लिए वो हर चीज जो मुझे खुशी देती है वो कला है”।
व्यस्त और भागदौड़ भरी ज़िंदगी में भी अपने शौक के लिए वक्त निकालना डॉ हेपतुल्ला के लिए मुश्किल नहीं ररहा है। “जैसे ही मुझे वक्त मिलता है मैं कला को समर्पित करती हूं। वैसे से तो सबसे ज्यादा सुख किताबों को पढ़ने में मिलता है पर बुनाई और पेंटिग करना भी बेहद पसंद है। वैसे तो मेरे लिए यह बहुत ही मुश्किल सवाल है कि मैं बताऊं की कौन से काम में मेरा दिल सबसे ज्यादा लगता है। मैं बुनाई करूं, पेटिंग करुं या फिर क्रोशिया यह सब मूड के अलाव इस बात पर भी निर्भर करता है कि मैं कब और कहां हूं”।
क्या कभी महिला होने के कारण उन्हें राजनीति के क्षेत्र में दिक्कत आई है इस पर वो कहती हैं, “मुझे बहुत खुशी होती है, जैसे एक आदमी राजनीति में अच्छा महसूस करता है वैसे ही मुझे भी अच्छा लगता है। मैं कभी आदमी और औरत के नजर से नहीं सोचती हूं। मुझे गर्व है मैं औरत हूं। अगर एक पुरूष पॉलीटिक्स कर सकता है तो फिर औरत क्यों नहीं। जब मैं डेप्यूटी चेयरमैन बनी थी तो घर चलाना बेहद मुश्किल हो रहा था। मैं उस समय मात्र 45 वर्ष की थी। लेकिन मैंने उस काम को काफी एन्जॉय किया। मैं यही कहती थी अगर कोई मर्द चैलेंज ले सकता है तो फिर मैं क्यों नहीं। पूरे जीवन मैंने यही सोचा है अगर कोई और काम को कर सकता है तो फिर मैं क्यों नहीं।“
ऐसा नहीं है कि हर कामकाजी स्त्री की तरह उन्हें परिवार और राजनीतिक जीवन में सामंजस्य बैठाने में मशक्कत नहीं करनी पड़ी। वो कहती हैं, “एक औरत के लिए एक पब्लिक लाइफ जीना मुश्किल तो होता ही है। अगर औरत कामकाजी है तो उसे परिवार और काम के बीच बैलंस बनाना ही होता है। मैं अपने परिवार और बच्चों को नज़रअंदाज़ बिलकुल नहीं करना चाहती थी। ना ही मैं अपने हॉबिस से बिलकुल अलग थलग हो जाना चाहती थी। कामकाजी होने के बावजूद हर किसी का एक पर्सनल जीवन भी होता है। आपकी पसंद नापसंद मायने रखती है। मुझे कभी नहीं लगा है मुझे मेरे काम में कभी दिक्कत आई है।“
डॉ हेपतुल्ला अपने पति प्रसिद्ध मानव संशाधन सलाहकार अकबरअली ए हेपतुल्ला से मिले सहयोग को याद कर भावुक हो उठती हैं“मेरे पति का मुझे काफी सहयोग मिला। जब मैं काम पर रहती थी तो उन्होंने बच्चों की पढ़ाई का पूरा ख्याल रखा। अक्सर मैंने देखा है काम में व्यस्त हो कर माता-पिता बच्चों को नज़रअंदाज़ करने लगते हैं।“
देश की राजनीति पर जीवन समर्पित करने वाली डॉ हेपतुल्ला ने अपनी तीनों बेटियों की अच्छी परवरिश में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी बेटियों को भी कला के गुर बांटने वाली डॉ हेपतुल्ला कहती हैं, “अपनी बेटियों को भी बुनाई, पेटिंग की कला सिखाई है। मेरी बेटियां बुनाई भी करती हैं और पेंटिंग भी”।
“मेरी तीन बेटियां हैं। मुझे अच्छा लगता है मेरे पति की मदद से हमारी बेटियों की बहुत अच्छी परवरिश हुई है। तीनों बेटियों बहुत ही पढ़ी लिखीं और अच्छी नौकरियों में कार्यरत हैं। सबसे बड़ी बेटी एक डॉक्टर है। हॉवर्ड से पढ़ाई करके वो एलबर्ट आंइसटाइन इंस्टिट्यूट में पिडियाट्रिक एंडोक्रोनॉलजी डिपार्टमेंट की हेड है। दूसरी बेटी सिटी बैंक के न्यूयार्क हेडक्वाटर्स में मैनेजिंग डायरेक्टर है. वो टेक्नॉलजी और रिस्क मैनेजमेंट की ग्लोबल हेड है। सबसे छोटी बेटी शिकागो में है वो एक बड़ी स्टील कंपनी में ऑडिट मैनेजर है।“
इन सारी कलाओं को सीखने के लिए डॉ हेपतुल्ला को परिवार से काफी प्रोत्साहन मिला लेकिन वह कहती हैं कि यह तो वयक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कला के प्रति वो कितना समर्पित है। “यह तो आपके ऊपर है कि आप उसे कितना सीखते हैं। मेरी आंटी चाहती थीं कि मैं हर कुछ सीखूं। वो चाहती थीं कि मुझमें औरत के सभी गुण हों। उन्होंने मुझे बहुत पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया।“।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की नातिन होने के नाते डॉ हेपतुल्ला के उम्मीदें भी सबको बहुत थी। वो मौलाना अबुल कलाम आजाद के सहयोग को याग करती हैं- “उन्होंनें मुझे लिखा- तुम जितना पढ़ना चाहती हो पढ़ो। जो भी पढ़ाई करो, जो भी नौकरी करो उसे पूरी शिद्दत से करो और उसे अच्छी तरह से करो। लोग तुम्हें तुम्हारी शिक्षा और दक्षता के लिए याद करेंगे इसलिए नहीं कि तुम किस परिवार से ताल्लुक रखती हो।
मैंने जूलॉजी (जीव विज्ञान) में पी जी किया और पूरी यूनिवर्सिटी में मैं अव्वल आई। उस समय मैं सिर्फ 20 वर्ष की थी। मुझे तब यू जी सी से स्कॉलरशिप मिली जिसे मैंने नहीं लिया।“
एमएससी करने के बाद ह्दय रोग विज्ञान में पीएचडी करने वाली डॉ हेपतुल्ला राजनीति में दिलचस्पी के कारण राजनीति में आई।
मुंबई प्रदेश कांग्रेस कमेटी की महासचिव से राजनीतिक सफर की शुरूआत करने वाली डॉ हेपतुल्ला ने उपाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। 1980 से राज्य सभा की सदस्य रही डॉ हेपतुल्ला 1985 से 1986 तथा 1988 से 2007 तक राज्यसभा की उपसभापति रहीं। सोनिया गंधी से रिश्ते बिगड़ने के बाद 2004 में उन्होंने भाजपा का दामन थामा।
डॉ हेपतुल्ला बेहद संवेदनशील और किसी भी मसले को गहराई से सोचती हैं। उन्हें कविताएं लिखने का भी शौक है। 2011 में उनकी कविताओं का संग्रह ‘इंप्रेशन्स’ प्रकाशित हुई थी। वो कहती हैं “मुझे चैलेंज लेना पसंद है। बिना चैलेंज के तो जीवन बोरिंग है।