स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
एक गंभीर और बेहद महत्वपूर्ण विषय के प्रति विश्वभर की आवाम को जागरुक करने के लिए 10 सितंबर के दिन मनाया जाता है World Suicide Prevention Day यानि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस। वैसे शायद ही विस्तार से ये बताने की जरूरत है कि, क्यों इस दिन के प्रति जागरुकता फैलाने को एक दिन समर्पित है, फिर भी प्रत्येक को इस विषय की गंभीरता का ज्ञान हो और इस दिशा में हर कोई अपने स्तर पर अपनों और अपने परिचितों को जागरुक कर सके इसलिए इस विषय का हर पहलू जानना बेहद जरूरी है।
आत्महत्या, इस शब्द के संपर्क में आने वाला व्यक्ति न सिर्फ अपने हाथों अपने जीवन को खत्म करता है, बल्कि अपने परिचितों के लिए भी कभी न भरने वाले जख्म दे जाता है। देखा जाए तो आज के दौर में आत्महत्या किसी महामारी से कम नहीं है, इसलिए इक्का-दुक्का देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया इसकी रोकथाम की दिशा में अग्रसर है, और इसी उद्देश्य से 10 सितंबर को World Suicide Prevention Day यानि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। जिसका आयोजन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की भागीदारी में IASP यानि International Association for Suicide Prevention द्वारा किया जाता है ताकि विश्व में लगातार बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति पर विराम लग सके।
ये तो सभी जानते हैं कि जिन्दगी दोबारा नहीं मिलती फिर क्यूं एक व्यक्ति अपने ही हाथों अपने अनमोल जीवन को मौत के हवाले कर देता है, क्या मनस्थिति होती होगी, कैसी लाचारी होती होगी जो किसी को ऐसा कदम उठाने को मजबूर करती है, जब भी आत्महत्या शब्द जहन में आता है, ऐसे अनगिनत सवाल मन में उमड़ते हैं, साथ ही एक ग्लानि तब भीतर ही भीतर कचोटती है जब हमारे संपर्क में आने वाला कोई इस महामारी की बलि चढ़ता है, तब मन अरसे तक इस ग्लानि में रहता है कि काश उसने कहा होता, मुझसे शेयर किया होता, मुझे मालूल होता तो क्या पता ये न होता… आदि। ये सब सवाल एकदम सहीं हैं, क्योंकि आत्महत्याओं को रोका जा सकता है,इन पर विराम संभव है, यदि सही दिशा में और आत्महत्या के कारणों के हर खोजे जाएं।
आत्महत्या के लिए मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन इसकी मुख्य वजह एक हद तक गरीबी है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक पुरानी स्टडी भी ये कहती है कि ऐसे देशों में आत्महत्या करने वालों की गिनती ज्यादा है जहां प्रति व्यक्ति आय कम है, हालांकि बीते कुछ सालों में ये बात पूरी तरह सही साबित नहीं होती कि आर्थिक तंगी से जूझते लोग ही आत्महत्या का रास्ता अख्तियार करते हैं क्योंकि कई संपन्न और समृद्ध लोगों ने भी स्थिति के आगे घुटने टेक मौत को गले लगाया है, ऐसे मासूम जो तंगी और संपन्नता का फर्क ठीक से समझ नहीं पाते, आत्महत्या जैसा बढ़ा कदम उठाते हैं। इसका सीधा अर्थ ये है कि बदलती जीवन शैली में इसांन का मानसिक स्वास्थ्य इतना ज्यादा बोझिल हो रहा है कि वो जीवन की चुनौतियों के सामने खुद को सक्षम नहीं पाता, क्योंकि समस्याएं तो पहले भी थीं रातों रात तो नहीं उपजीं। यानि लोगों का सिर्फ जीवन जीने का तरीका ही नहीं बदला, समस्याओं को देखने का नजरिया भी बदल गया है, और यही बदला नजरिया इंसान को मानसिक रूप से बीमार करता है या ये कहें कि अवसाद की ओर ले जाता है।
वो मानसिक अवसाद ही है जो एक व्यक्ति को जीवन खत्म करने पर मजबूर करता है, और इस अवसाद का वास्ता अमीरी-गरीबी से नहीं, पारिवारिक समस्याओं और भावनात्मक कमजोरी से है। आज के माहौल में हम जिस परिवेश में जीते हैं उसमें वास्तविकता कम छलावा ज्यादा है, हमने अपने इर्द-गिर्द एक ऐसा वर्चुअल वर्ल्ड क्रिएट किया है जिसमें भीड़ हजारों की है लेकिन साथ कोई नहीं। इस अजनबी-ख्याली भीड़ के बीच इंसान छोटी सी चुनौती के आगे भी टूट जाता है, क्योंकि वो किसी वास्तविक अपने का भावनात्मक सपोर्ट नहीं पाता।
अब ऐसा भी नहीं है कि इस समस्या को हमारे सामने किसी और ने खड़ा किया है, ये समस्या हमारी अपनी बनाई है, हमारे अपने जीवन जीने के तरीके और आधुनिक सोच ने इजाद की है, तो जाहिर है इस समस्या को काबू और इसका खात्मा भी हमें ही करना होगा। वास्तवकि संसार से जुड़ना होगा, रिश्तों को पहले की तरह एक अहसास के साथ जीना होगा, जो दिल में है उसे अपने से शेयर करने की आदत फिर से बनाएं। सिर्फ चैट बॉक्स में इमोजी भेजने की आदत से बाहर निकल अपनों से अपनी भावनाएं शेयर करें। खुशी भी बांटें और गम भी, क्योंकि वो कहावत झूठ नहीं है कि खुशी बांटने से बढ़ती है औऱ दर्द बांटने से घटता है। जिन्दगी की चुनोतियों से मुकाबला करें, हार के आगे जीवन न हारें। याद रखें आत्महत्या समस्याओं का अंत नहीं बल्कि आपके जीवित बचे अपनों की समस्याओं की शुरुआत है। इसलिए आत्महत्या की राह कभी न पकड़ें।