मई महीने का पहला मंगलवार, एक ऐसी बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए समर्पित किया गया है, जिसका संबंध इसांन की सांसों से है। इस बीमारी का नाम है अस्थमा, जिसे आम भाषा में दमा भी कहते हैं। इस साल आज यानि 4 मई को पूरा विश्व world asthma day मना रहा है। जिसे हर साल इस उद्देश्य से मनाया जाता है कि अस्थमा जैसी बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक कर इसकी रोकथाम के प्रयास सफल किए जा सकें। एक ऐसा वक्त जब अस्थमा से अलग एक दूसरी महामारी इंसान की सांसों पर ग्रहण लगाए हुए है, स्वस्थ सांसों का महत्व और इसके प्रति जागरुकता एक महत्वपूर्ण और चिंतन का विषय है।
आज विश्वभर में कोरोना महामारी ने हाहाकार मचाया हुआ है, और बीते कुछ हफ्तों में कोरोना की दूसरी लहर के चलते भारत में जनमानस की सांसों पर इस बीमारी ने जो ग्रहण लगाया है उससे पूरे देश में स्थिति गमज़दा है। अस्थमा से अलग कोविड 19 संक्रमण के चलते लोगों की सांसें अटक रही हैं, वायरस के प्रभाव से फेंफड़ों में जानलेवा इन्फेक्शन लोगों की जान ले रहा है, मरीजों की बढ़ती गिनती स्वास्थ्य सुविधाओं को भी कमजोर कर रही है, उस पर दवाओं और ऑक्सीजन की कमी ने भी सबकी सांसें फुला रखी हैं। ऐसे वक्त में सांस से संबंधित अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी को समझना और इसके बचाव के उपायों पर विचार करना बेहद जरूरी है।
अब आप कहेंगे कि मैं अस्थमा को कोरोना से क्यों जोड़ रही हूं, तो वो इसलिए क्योंकि सांस की बीमारी से संबंधित व्यक्ति के लिए कोरोना की चपेट जानलेवा साबित हो सकती है, जो व्यक्ति पहले से एक ऐसी बीमारी का शिकार है, जिसमें सांसों का जोखिम है, क्या वो एक और ऐसी महामारी के प्रहार को झेल सकने में सक्षम होगा, जो सांसों को ही जकड़ती हो, बेशक नहीं, इसलिए ये समझना और जागरुक होना जरुरी है कि सांसों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए और अस्थमा जैसी बीमारी से बचाव के लिए क्या किया जाए।
दुनियाभर में 1.5 करोड़ लोग अस्थमा से प्रभावित हैं, बात भारत की करें तो अपने देश में हर 10 में से एक व्यक्ति इस बीमारी की चपेट में है, ऐसे में बचाव ही एक कारगर उपाय है। हालांकि इस बीमारी को पूरी तरह ठीक तो नहीं किया जा सकता लेकिन इसके प्रति जागरुकता और सही वक्त पर सही इलाज इस बीमारी को काफी हद तक काबू कर सकते हैं और मरीज नॉर्मल लाइफ जी सकता है। इसी मकसद को ध्यान में रखकर साल 1998 में बार्सिलोना, स्पेन में पहली विश्व अस्थमा बैठक के संयोजन में 35 से ज्यादा देशों में पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया और इस बीमारी के प्रति अवेयरनेस फैलाने के लिए मई महीने के पहले मंगलवार को चुना गया। तब से हर साल GINA यानि ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा द्वारा हर साल विश्व अस्थमा दिवस का आयोजन किया जाता है।
अस्थमा फेफड़ों से संबंधित रोग है, जिसमें प्रभावित मरीज को सांस लेने और छोड़ने में समस्या होती है और मरीज का दम फूलता है। कफ बना रहना, बलगम आना, सांस लेने में आवाज करना और सीने में खिचाव या जकड़न पैदा होना और बार-बार ऐसा होना, इसके लक्षण हैं। अक्सर प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रह रहे लोगों में ज्यादातर अस्थमा की समस्या देखी जाती है। ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, ये जरूरी नहीं कि ये सिर्फ बुजुर्गों को ही अपना शिकार बनाए, बल्कि बच्चों को ये बीमारी जल्द अपनी गिरफ्त में लेती है वहीं पुरुषों में इसके होने की संभावना ज्यादा रहती है। हर दिन बढ़ते प्रदूषण और इंसान की बिगड़ी जीवन शैली की वजह से आज अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। दुख की बात ये है कि जागरुकता की कमी की वजह से लोग इस बीमारी के लक्षणों को नजरंदाज करते हैं और जबतक बीमारी समझ आती है तक तक समस्या काफी गंभीर हो जाती है, इसीलिए अस्थमा डे के माध्यम से इस विषय के प्रति लोगों को जागरुक किया जाता है ताकि लोग इस रोग को समझें और सही वक्त पर इसकी रोकथाम संभव हो सके।
इसके अलावा मौजूदा समय में कोरोना के चलते जो हालात हैं ऐसे में अस्थमा के मरीजों का खास अहतियात की जरूरत है क्योंकि अस्थमा रेस्पिरेटरी सिस्टम से जुड़ी हुई बीमारी है और कोरोना वायरस का संक्रमण भी रेस्पिरेटरी सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में अगर कोई ऐसा व्यक्ति कोविड संक्रमित हो जाए, जिसे अस्थमा की भी समस्या है, तो ऐसे मरीजों के लिए हालात काफी खराब हो सकते हैं। इसलिए इस वक्त में अस्थमा के मरीज खास अहतियात बरतें, कोशिश करें कि घर पर ही रहें, बेहद जरूरी न हो, तबतक घर से बाहर न निकलें, और यदि जा भी रहे हैंतो कोविड नियमों का पालन करें, सावधानी ही बचाव है।