श्वेता रंजन | 1 मई 2025
नई दिल्ली/पटना:
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस हमले ने न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि इसका असर अब धीरे-धीरे भारत की चुनावी राजनीति पर भी दिखने लगा है। खासकर बिहार जैसे राज्यों में, जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां इसकी सियासी गूंज साफ सुनाई दे रही है।
हमले के बाद देश दो धाराओं में बंटा दिख रहा है
पहलगाम की घटना में आतंकियों ने धर्म पूछकर हत्याएं कीं। यह सिर्फ एक आतंकवादी हमला नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और वैचारिक धक्का था, जिसने जनभावनाओं को गहराई तक झकझोर दिया है। इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं को “फ्री हैंड” देते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की छूट दे दी। इससे एक बार फिर पूरा देश मोदी सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है।
इसके विपरीत, विपक्षी दल – खासकर कांग्रेस, राजद, और सपा – इस हमले को सरकार की सुरक्षा चूक बता रहे हैं। लेकिन आम जनता का एक बड़ा वर्ग इसे “राष्ट्र के अपमान” के तौर पर देख रहा है, और इस बार फिर भावनात्मक रूप से भाजपा के करीब खिसकता नजर आ रहा है।
क्या फिर चलेगा मोदी फैक्टर?
भारत में पिछले एक दशक के चुनावों को देखें तो स्पष्ट होता है कि भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण पार्टी की विचारधारा नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व और नेतृत्व रहा है।
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2014 में मोदी के करिश्मे ने भाजपा को सत्ता दिलाई,
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2019 में पुलवामा और बालाकोट के बाद आई राष्ट्रवादी लहर ने भाजपा को और मजबूती दी,
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2024 में तीसरी बार मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने सत्ता हासिल की।
अब 2025 में एक बार फिर एक आतंकी घटना के बाद जनता का मूड भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है। अगर पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल या एयर स्ट्राइक जैसे किसी बड़े एक्शन की घोषणा होती है, तो यह चुनावी मैदान में भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है।
बिहार की राजनीति में राष्ट्रवाद का प्रवेश
बिहार की राजनीति अब तक जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। यादव-मुस्लिम समीकरण, सवर्ण वोट बैंक, दलित-महादलित गठजोड़ – यही जीत का गणित हुआ करता था। लेकिन 2014 के बाद पहली बार बिहार में भी राष्ट्रवाद और सुरक्षा जैसे मुद्दे निर्णायक भूमिका निभाने लगे हैं।
2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अकेले 18 सीटें जीतीं, जबकि उसके सहयोगी दल जेडीयू को भी फायदा मिला। अब विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल एकजुट हैं।
दिलचस्प बात यह है कि कभी मोदी के कट्टर आलोचक रहे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता भी अब पूरी तरह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार कर चुके हैं।
विपक्ष की असमंजस की राजनीति
विपक्ष ने 2024 में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाकर मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें जनता का वह समर्थन नहीं मिला जिसकी उम्मीद की जा रही थी।
राहुल गांधी की “कट्टर हिन्दू” छवि बनाने की कोशिश – जैसे जनेऊ पहनना, गोत्र बताना – भी असर नहीं दिखा सकी।
अब पहलगाम की घटना के बाद कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सुरक्षा चूक का मुद्दा बनाकर भाजपा को घेरना चाह रहे हैं, लेकिन इसका उल्टा असर दिखाई दे रहा है।
बहुसंख्यक समाज में यह धारणा बन रही है कि विपक्ष पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाने से बच रहा है, और इसका फायदा सीधे भाजपा को मिलता नजर आ रहा है।
क्या होगा असर?
अगर आने वाले दिनों में भारत, पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य या कूटनीतिक कार्रवाई करता है, तो यह तय माना जा रहा है कि इसका असर सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि राज्यीय चुनावों – विशेषकर बिहार और 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव – पर भी गहराई से पड़ेगा।
भाजपा के लिए यह एक बार फिर से ‘मोदी बनाम बाकी’ का चुनाव हो सकता है। और अगर जनता में राष्ट्रवाद का भाव उफान पर रहा, तो विपक्ष के लिए यह चुनावी मैदान और भी कठिन हो जाएगा।
पहलगाम की घटना अब सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं रही, बल्कि यह आने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने वाली घटना बन चुकी है। अब देखना यह है कि क्या भाजपा इस मुद्दे को भुनाने में सफल होती है, या विपक्ष कोई नया नैरेटिव खड़ा करने में कामयाब होता है।