स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
हर साल 17 अप्रैल को विश्व भर में world haemophilia day के रूप में मनाया जाता है, क्या है हीमोफीलिया और इस बीमारी के प्रति जागरुकता के लिए वैश्विक स्तर पर एक दिन मनाने की जरूरत क्यों पड़ी। इन तमाम सवालों के जवाब आप इस आर्टिकल को पढ़कर जान सकते हैं। हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है, यानि जींस के आधार पर ये रोग माता-पिता से बच्चों में जाता है, और हर 10 हजार में से एक पुरुष के हीमोफीलिया से पीड़ित होने की आशंका रहती है। जिसमें पीड़ित रक्तस्राव की गंभीर समस्या से जूझता है। आसान शब्दों में समझें तो हीमोफीलिया एक अनुवांशिक रक्त बीमारी है जिसमें खून का थक्का नहीं जमता, बहता रहता है।
किसी भी गंभीर बीमारी के प्रति जागरुकता भी उसपर नियंत्रण और उससे बचाव का एक अच्छा माध्यम हैं, इसीलिए इस बीमारी के प्रति जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 17 अप्रैल की तारीख को वर्ल्ड हीमोफीलिया दिवस के रूप में वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। World haemophilia day को मनाने की शुरुआत WHF यानि वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के द्वारा की गई। साल 1989 में WFH के संस्थापक Frank Schnabel के सम्मान में उनके जन्मदिन की तारीख यानि 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे के रूप में मनाने का फैसला हुआ यानि इस वर्ष हम और आप 31वां World haemophilia day मना रहे हैं।
WFH का इस दिन को वैश्विक स्तर पर मनाने का उद्देश्य हैं उन लोगों की देखभाल, बेहतर निदान और उनके लिए प्रयास करना है जो बिना इलाज के जीवन बिताते हैं। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर इस बीमारी के प्रति जागरुकता तो फैलाई ही जाती है साथ ही उन लोगों के लिए धन जुटाने के लिए भी प्रेरित किया जाता है जो इस बीमारी से पीड़ित हैं और अपने इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं। यानि विश्व हीमोफीलिया दिवस, रक्तस्रावी विकारों के बारे में व हीमोफीलिक रोगियों और आम जनता को शिक्षित करने पर केंद्रित है। जागरुकता कार्यक्रमों के जरिए ये उचित उपचार के लिए भी जोर देता है और हीमोफीलिक रोगियों की देखभाल करता है। विश्वभर में ये दिन हर साल एक विषय के साथ मनाया जाता है, बीते साल 2020 में इस दिन के लिए थीम यानि विषय था Get + Involved और इस साल जब विश्व कोरोना नामक महामारी से त्रस्त है और उससे बचाव के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, ऐसे वक्त में वर्ल्ड हीमोफीलिया डे की थीम है Adapting to Change, यानि बदलाव को स्वीकारना।
यदि आपकी पहचान, जानकारी या सहकर्मियों में कोई व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित है, तो उसके लिए सहायक बनें, और अपने परिचितों, अपनों और अपने आसपास के लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक करें, ताकि वक्त रहते इस बीमारी के शिकार लोग समय पर इलाज पा सकें।