ट्रांसजेंडर लोक नृत्यांगना मंजम्मा जोगती को मंगलवार को राष्ट्रपति ने पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। पुरस्कार लेने से पहले मंजम्मा ने जिस अंदाज में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिवादन किया उसे देख कर दरबार हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
इस साल के सभी सम्मानित लोगों में मंजम्मा इकलौती ट्रांसजेंडर विजेता हैं। वैसे तो इस वर्ष अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए 7 लोगों को पद्म विभूषण, 10 लोगों को पद्म भूषण और 102 लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। परंतु जिस अनोखे अंदाज में मंजम्मा ने राष्ट्रपति का अभिवादन किया, वो सुर्खियों में बनी हुई हैं। सम्मानित लोगों में से 29 पुरस्कार विजेता महिलाएं, 16 मरणोपरांत पुरस्कार विजेता और मंजम्मा अकेली ऐसी ट्रांसजेंडर हैं जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद एक अलग मुकाम हासिल किया।
मंजम्मा जोगती का असली नाम मंजूनाथ शेट्टी था। कर्नाटक के बेल्लारी जिले में कल्लुकंब गांव में 50 के दशक में मंजूनाथ का जन्म हुआ था। मंजूनाथ सामान्य बच्चों की तरह स्कूल जाया करता था। स्कूल में उसे कक्षा की लड़कियों के साथ रहना पसंद था, उनके हाव-भाव पसंद थे। मंजूनाथ को लड़कियों की तरह रहना पसंद था। वह अक्सर अपनी कमर पर तौलिया बांधता और ऐसे महसूस करता, जैसे वह तौलिया नहीं स्कर्ट हो।
मंजूनाथ की हरकतों को देख उसके भाई को लगा कि उस पर माता आ गई है। माता उतारने के लिए उसने मंजूनाथ को खंभे से बांध दिया और खूब मारा। उन्हें डॉक्टर और फिर पुजारी के पास ले जाया गया। पुजारी ने कहा कि इसके पास दैवीय शक्ति है।
आसान नहीं थी जिंदगी
मंजूनाथ के घरवाले उसे डॉक्टर और पुजारी को दिखाने ले गए। अब उन्हें यकीन हो गया था कि मंजूनाथ में ट्रांसजेंडर वाले गुण हैं। मंजू के मा-बाप उसे 1975 में होस्पत के पास हुलीगेयम्मा मंदिर ले गए। यहां जोगप्पा बनाने की दीक्षा दी जाती है। जोगप्पा या जोगती, वह ट्रांस पर्सन होते हैं, जो खुद को देवी येलम्मा से विवाहित मानते हैं। ये देवी के भक्त होते हैं। देवी येलम्मा को उत्तर भारत में रेणुका के नाम से जाना जाता है। दीक्षा के लिए मंजूनाथ का उडारा काटा गया। उडारा लड़कों की कमर के नीचे बंधा एक तार होता है। उडारा काटने के बाद मंगलसूत्र, स्कर्ट- ब्लाउज और चूड़ियां दी गईं। यहीं से मंजूनाथ को नया नाम मिला- मंजम्मा जोगती।
जब जिंदगी से हार गई थी मंजम्मा
द हिन्दू बिजनेस लाइन से बातचीत में मंजम्मा बताती हैं कि दीक्षा लेने के बाद मंजूनाथ से वो मंजम्मा जोगती बन गई। इस बात से मंजम्मा की मां को बहुत सदमा लगा। मां की बातें और दुख को मंजम्मा सह न सकी और एक दिन उसने जहर खा लिया। घरवाले उसे अस्पताल ले गए, जहां उसे बचा लिया गया।
द हिंदू बिजनेस लाइन के मुताबिक, मंजम्मा की जिंदगी आसान नहीं थी। घर वालों पर उसके ट्रांसजेंडर होने के कारण पहाड़ सा दुख आ पड़ा था। जहर खाने के बाद भी जब बात न बनी तो मंजम्मा ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। वो भीख मांगकर गुजारा करने लगीं। इस दौरान उसे बहुत तकलीफें सहनी पड़ी। सड़क पर गुजर बसर करने वाली मंजम्मा का छह लोगों ने रेप किया। यहां तक की उसके पास जो पैसे थे वो भी लूट लिए। मंजम्मा पूरी तरह से टूट चुकी थी। बार-बार मन में आत्महत्या करने के विचार आते लेकिन एक घटना ने मंजम्मा की जिंदगी को नई दिशा दी। सड़क पर जोगती नृत्य करते एक बाप-बेटे को देखकर उन्होंने ये फैसला बदल दिया।
दरअसल कर्नाटक में दावणगेरे बस स्टैंड के पास मंजम्मा ने एक पिता-पुत्र की जोड़ी को लोक गीत और नृत्य के करते देखा। पिता गीत गाता और बेटा नाचता था। बेटा स्टील के घड़े को सिर पर रखकर, उसे बिना गिराए नृत्य कर रहा था। साथ ही वह जमीन पर गिरे सिक्कों को अपने मुंह से उठा भी रहा था। यही ‘जोगती नृत्य’ है। बस फिर क्या था मंजम्मा ने यह नृत्य सीखने का मन बनाया और उनके शरण में चली गई। मंजम्मा उस आदमी की झोपड़ी में रोजाना जाती और नृत्य सीखती।
क्या है जोगती नृत्य?
जोगती नृत्य जोगप्पा लोगों का लोक नृत्य है जिसे पारंपरिक तौर पर ‘ट्रांस वीमेन’ करती हैं। ये मुख्यतः उत्तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में रहती हैं। नृत्य के प्रति मंजम्मा के लगाव को देखते हुए साथी जोगप्पा ने उन्हें एक कालव्वा नाम के लोक कलाकार से मिलवाया। कालव्वा एक विशेषज्ञ थे और मंजम्मा नौसिखिया। लेकिन वो मंजम्मा के नृत्य से बेहद प्रभावित हुए और उसे नाटकों में छोटे-मोटे रोल के लिए बुलाना शुरू किया।
बस फिर क्या था मंजम्मा को चाहने वालों की लाइन लग गई। वो जोगती नृत्य की पहचान बन गई। डेक्कन हेराल्ड से बातचीत में वह कहती हैं, ‘सच कहूं तो मैंने ये नृत्य इसलिए नहीं सीखा क्योंकि मेरा बहुत मन था। मैंने ये नृत्य इसलिए सीखा ताकि अपनी भूख से लड़ सकूं। इससे अपनी जिंदगी चला सकूं।
वो कहती हैं सड़कों पर भीख मांगना या फिर सेक्स वर्कर बनना भी एक ऑप्शन था लेकिन अगर वो ऐसा करती तो वो जिंदा नहीं होती। जोगती नृत्य ही मुझे आगे लेकर आया है और मैं चाहती हूं कि ये नृत्य और जोगप्पा समुदाय आगे बढ़े। जो इसने मेरे लिए किया, मैं भी इसके लिए वही कर सकूं।’ जोगप्पा एक ट्रांस समुदाय है।
कर्नाटक जनपद अकादमी’ की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष
साल 2006 में मंजम्मा जोगती को कर्नाटक जनपद अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। फिर साल 2010 में कर्नाटक राज्योत्सव सम्मान। फिर वो ‘कर्नाटक जनपद अकादमी’ की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष बनी, जिस पद पर पहले सिर्फ पुरुष ही चुने जाते थे। यह अकादमी साल 1979 में बनी थी। इस संस्था का काम राज्य में लोक कला को आगे बढ़ाना है।
मंजम्मा की आत्मकथा
मंजम्मा की संघर्ष भरी जिंदगी के बारे में उनकी आत्मकथा ‘नाडुवे सुलिवा हेन्नु’ से जाना जा सकता है। इस किताब में ना सिर्फ मंजम्मा की खुद की जिंदगी बल्कि ट्रांसजेंडर्स के संघर्ष और जोगती नृत्य से जुड़ी ढ़ेरों जानकारियां हैं। मंजम्मा की आत्मकथा तो हावेरी जिले के स्कूलों और कर्नाटक लोक विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है। यहां तक कि गुलबर्ग विश्वविद्यालय ने अगले तीन साल के लिए उनकी आत्मकथा का 100 पन्नों का सारांश तैयार किया है, जिसे स्नातक की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स चौथे सेमेस्टर के दौरान पढ़ेंगे। कर्नाटक राज्य अक्का महादेवी महिला विश्वविद्यालय ने भी मंजम्मा जोगती की बायोग्राफी को अपने सिलेबस में शामिल किया था।