उत्तर प्रदेश में कुछ ही दिनों में चुनाव होने वाले हैं। 1950 से अब तक उत्तर प्रदेश की जनता ने 21 मुख्यमंत्री देखे हैं। यूपी के 21 वें सीएम हैं योगी आदित्यनाथ।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे 21 नामों में से मायावती (Mayawati) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) जैसे कई नेता ऐसे हैं जो एक से ज्यादा बार प्रदेश के मुखिया बने। कई ऐसे नाम भी रहे जिन्हें महज एक साल के अंदर ही सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। आइए डालते हैं ऐसे नामों पर एक नजर:
यूपी के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले चंद्रभान गुप्ता तीन बार मुख्यमंत्री बने थे। चंद्रभान गुप्ता भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता थे। वे 7 दिसम्बर 1960 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इसके बाद वे दो बार और मुख्यमंत्री रहे। 1967 में वो मात्र 19 दिनों के लिए ही सीएम बन पाये थे। उनके बाद चौधरी चरण सिंह सीएम की कुर्सी पर काबिज हुए थे। किसान नेता चौधरी चरण सिंहने कांग्रेस को तोड़कर अपनी पार्टी बना ली। चंद्रभान की सरकार गई। चरण सिंह मुख्यमंत्री बन गये। पर वो सरकार चला नहीं पाए। वो सरकार भी गिरी। और चंद्रभान गुप्ता को आनन-फानन में 1969 में फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया।
लेकिन मात्र 328 दिनों में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। एक साल तक भी वो सीएम नहीं रह पाये। 3 अप्रैल 1967 को पहली बार यूपी सीएम की शपथ लेने वाले चरण सिंह को 25 फरवरी 1968 को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। वो एक बार फिर यूपी के सीएम बने 18 फरवरी 1970 को। इस बार भी वह बतौर सीएम एक साल भी पद पर नहीं रह सके। 225 दिन बाद 1 अक्टूबर 1970 को उन्हें पद छोड़ना पड़ा था।
अब बात कांग्रेस पार्टी के त्रिभुवन नारायण सिंह की। 18 अक्टूबर 1970 को राज्य के सीएम बने। लेकिन 167 दिन बाद 3 अप्रैल 1971 को उन्हें अपने पद से हटना पड़ा था। उनके सीएम बनने से पहले उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार थी। कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी। कार्यकाल पूरा होने से पहले चौधरी चरण सिंह को पद से हटाया गया था। चौधरी चरण सिंह के बाद टीएन सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन उस समय वह किसी सदन के सदस्य नहीं थे। नियमानुसार छह महीने में टीएन सिंह को किसी सदन का सदस्य बनना था। लेकिन उपचुनाव हुए तो टीएन सिंह 16 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे।
मायावती चार बार सूबे की मुखिया रह चुकी हैं। सबसे पहले 3 जून 1995 को वो राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं। लेकिन महज 137 दिनों में ही 18 अक्टूबर 1995 को उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। 21 मार्च 1997 को मायावती एक बार फिर राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। इस बार भी वह करीब 6 महीने ही कुर्सी पर बनी रह सकीं। 21 सितंबर 1997 को उन्हे इस्तीफा देना पड़ा था।
12 नवंबर 1999 को भाजपा के राम प्रकाश गुप्ता यूपी के 18वें मुख्यमंत्री बने। लेकिन सालभर के भीतर ही 28 अक्टूबर 2000 को उन्हें अपने पद से हटना पड़ा। उनके बाद बीजेपी ने राजनाथ सिंह को सीएम बनाया था। दरअसल सीएम की रेस में बड़े-बड़े चेहरे थे- राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, केशरीनाथ त्रिपाठी, लाल जी टंडन, ओम प्रकाश सिंह, विनय कटियार। लेकिन कोई किसी को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने को तैयार ही नहीं था। पार्टी में पड़ी फूट के कारण केंद्रीय नेतृत्व ने 12 नवंबर 1999 को पार्टी नेतृत्व ने चौंकाने वाला फैसला किया। 77 साल के रामप्रकाश गुप्त को मुख्यमंत्री बना दिया गया। यह एक बड़ा ही चौंकाने वाला फैसला था। डेढ़ दशक से वो राजनीति की मुख्यधारा से बाहर थे। या यूं कह लें कि वो घर में रिटायरमेंट वाला जीवन जी रहे थे। ना तो वो किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे ना ही राजनीति में सक्रिय। लेकिन जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक होने के कारण उनके नाम की पहचान थी। वो चरण सिंह की कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री के रूप में रह चुके थे। 1977 में वो प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर भी रह चुके थे। पार्टी के अंदर न तो उनका कोई खेमा था और न ही वह किसी गुट का हिस्सा माने जाते थे, वजह ये थी कि वो एक रिटायर्ड राजनीतिज्ञ की जिंदगी जी रहे थे।