पश्चिम बंगाल में चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। इस बार बंगाल के चुनाव में जय श्री राम के नारे ने एक नये मुद्दे को जन्म दिया है। बीजेपी जय श्री राम के नारे के साथ ममता की नाराजगी को भुनाने में लगी है तो वहीं ममता अपनी सभाओं में कहती हैं, ‘हरे कृष्णा, हरे राम, बिदाई जाओ बीजेपी वाम।’ जय श्री राम के नारे के बीच दोनों ही पार्टियां अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी हैं।
दरअसल, दो हफ्ते पहले 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के खास मौके पर पीएम मोदी बंगाल में विक्टोरिया मेमोरियल में थे। कार्यक्रम में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। कार्यक्रम में ममता ने करीब 1 मिनट ही भाषण दिया था कि ‘जय श्री राम’ के नारे लगने लगे जिससे ममता बनर्जी नाराज हो गईं। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में बुलाकर उन्हें अपमानित किया गया है, सरकारी कार्यक्रम को राजनीतिक कार्यक्रम बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार के कार्यक्रम की गरिमा होनी चाहिए। आखिर में ‘जय हिंद-जय बांग्ला’ बोलकर भाषण में आगे कुछ और बोलने से इनकार कर दिया था।
उस दिन ममता की मौजूदगी में जय श्री राम के नारे ने ममता को इतना नाराज कर दिया है कि उन्होंने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने से साफ मना कर दिया है। रविवार को पीएम मोदी पश्चिम बंगाल और असम के दौरे पर रहेंगे। हल्दिया में वो एक सरकारी कार्यक्रम में शिरकत करने वाले हैं लेकिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उसमें शामिल नहीं होंगी। खबर यही है कि पीएम मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ममता बनर्जी को भी न्योता दिया गया था लेकिन ममता बनर्जी ने कार्यक्रम में शामिल होने से मना कर दिया है। तब से ममता समय- समय पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर लगे जय श्री राम के नारे को अपने अपमान का मामला बता रही हैं।
ममता की नाराजगी से किसका फायदा?
सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि ममता को जीतने के लिए इस मुद्दे से हटकर कुछ और बात करनी चाहिए या फिर यह घटना और उससे जुड़ा अपमान उन्हें कोई राजनीतिक फायदा दे सकेगा। बंगाली अस्मिता को बचाने की कवायद में लगी ममता बनर्जी यह लगातार कह रही हैं कि बीजेपी को चुनाव के ठीक पहले नेताजी की याद आई, वरना बीजेपी ने नेताजी द्वारा शुरू किए गए योजना आयोग को बंद कर दिया और उनकी मांग के बावजूद सुभाष जयंती पर राष्ट्रीय छुट्टी घोषित नहीं की गई। ममता नेता जी की जयंती के मुद्दे से दो मुद्दे निकाल रही हैं- एक तो यह कि बीजेपी सुभाष जी को सम्मान नहीं देती, दूसरा यह कि कार्यक्रम में सोचे समझे ढंग से उनका अपमान किया गया। उन्होंने कहा कि क्या किसी को अपने घर बुलाकर उसका अपमान करना उचित है। ममता यह लगातार कहने की कोशिश कर रही हैं कि बीजेपी ने बांग्ला स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है।
प्रश्न है कि क्या विक्टोरिया मेमोरियल के कार्यक्रम को पश्चिम बंगाल की जनता भी ममता का अपमान मानेगी? क्या वाकई यह अपमान था?
यहां इस बात को ध्यान में रखना होगा कि राजनेता से यह उम्मीद की जाती है कि वो सहन शक्ति दिखाए। हांलाकि सरकारी कार्यक्रम में जय श्री राम का नारा लगाना उचित नहीं था। खास तौर पर तब जब मुख्यमंत्री भाषण के लिए उठीं। लेकिन ममता ये कैसे भूल गईं कि उन्हें नाराजगी दिखा कर वो हमदर्दी नहीं बटोर सकती। बल्कि एक सशक्त राजनेता की भांति उन्हें मौके का फायदा उठाना चाहिए था। जय श्रीराम का नारे में साथ देकर वो हिंदु वोट को अपनी ओर खींच सकती थीं।
वहीं दूसरी ओर भाजपा इस मुद्दे को पूरी ओर भुनाने की कोशिश में लगी है। संजीदगी दिखा कर, नेता जी के साथ-साथ बंगाल के सारे महापुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों का नाम लेकर वोट को अपनी ओर खिंचने की कोशिश में लगी है। आलम अब यह हो चला है कि जय श्रीराम के नारे से ममता बनर्जी की चिढ़ अब उनके खिलाफ जा रही है।