वो बनना तो आईएएस चाहती थी लेकिन दरवाजे पर बजी एक घंटी ने उनका मकसद बदल दिया। जिंदगी में एक नई शुरुआत हुई और वो उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की बड़ी नेता बनी। दलितों का चेहरा बन गयी। आयरन लेडी कहलाईं, यूपी विधानसभा के इतिहास में सबसे ज्यादा चार बार मुख्यमंत्री बनी और फिर बहन जी के नाम से लोक प्रिय हो गईं। किसने बजाई थी देर रात मायावती के घर की घंटी जिससे मायावती का लक्ष्य ही बदल गया। एक प्रशासनिक सेवा में जाने की चाह रखने वाली लड़की उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की नेता बनी और एसटी/एससी समुदाय के बीच खुद को सबसे बड़े हिमायती के रूप में स्थापित किया।
जी हां वो साल था 1977 जब मायावती अपने घर में पढ़ाई कर रही थी, दिन में एक शिक्षिका की भूमिका, फिर लॉ की पढ़ाई और रात में आईएएस की तैयारी। आसान नहीं थी ज़िंदगी। खैर बात करते हैं उस घटना की जिसने मायावती की ज़िंदगी बदल दी। लेकिन उससे पहले का एक वाक्या जिसे जानना बहुत जरूरी है।
बात साल 1977 सितंबर की है। जनता पार्टी की सरकार थी। दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में ‘जाति तोड़ो’ नाम से एक तीन दिवसीय सम्मलेन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में मायावती भी मौजूद थीं। इस सम्मलेन का संचालन तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राजनारायण खुद कर रहे थे। वही राजनारायण जिन्होंने इंदिरा गाधी को हार का स्वाद चखाया था। राजनारयण अपने संबोधन के दौरान बार-बार हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहे थे। मायावती सबकुछ शांत होकर सुन रही थीं लेकिन जब वो मंच पर आई तो उन्होंने हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई क्योंकि यह अपमानजनक है। मायावती ने कहा की एक तरफ तो आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। यह शब्द ही दलितों में हीनता का भाव जगाता है। मायावती के तीखे बोल ने सुनने वालों में एक उर्जा का संचार कर दिया।
सम्मेलन में बामसेफ यानी बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज़ एमप्लाइज़ कम्यूनिटीज़ फेडरेशन के कुछ नेता भी मौजूद थे। मायावती से प्रभावित होकर यह बात उन्होंने कांशीराम को बताई। बामसेफ के निर्माण में कांशीराम की अहम भूमिका थी। मायावती के बारे में सुनकर कांशीराम समझ गये कि दलितों को उनका नेता मिल गया है। और एक दिन अचानक ही वह खुद मायावती के घर पहुंच गए।
दरवाजे पर बजी घंटी
यह उसी समय की बात है जब मायावती टीचर की नौकरी के साथ एलएलबी भी कर रही थीं। रात का वक्त था, मायावती के परिवार के लोग खाना खा कर सोने जा चुके थे, मायावती आईएएस की तैयारी में जुटी थीं कि घर की घंटी बजी। जब मायावती ने दरवाजा खोला तो सामने कांशी राम खड़े थे। कांशीराम ने सीधे पूछा कि पढ़कर क्या बनना चाहती हो तो मायावती का जवाब था आईएएस बनकर अपने समाज की सेवा करना चाहती हूं। कांशीराम ने कहा कि कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि देश और प्रदेश की सरकारें जो चाहेंगी वही करना होगा और हमारे समाज में कलेक्टर की कमी नहीं है। कमी है तो एक ऐसे नेता की जो उनसे काम करवा सके। यही वो लम्हां था कि कांशीराम की बातों ने मायावती को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कलेक्टर बनने का सपना छोड़ दिया और नेता बनने की ठान ली।
मायावती पढ़ाई में काफी होशियार थीं। राजनीति में जाने के उनके फैसले को पिता की मंजूरी नहीं मिली। जब मायावती नहीं मानीं तो वह काफी नाराज़ हुए और कहा कि सिविल सर्विसेस की तैयारी करो या फिर घर छोड़ दो। मायावती को इस बात का अंदेशा पहले से ही था। वो जानती थीं कि ऐसा दिन आयेगा इसलिए वह अपनी तनख्वा से कुछ पैसे बचाकर रखती थीं। उन्होंने बिना कुछ सोचे बैग बांधा और घर छोड़ दिया। वह दिल्ली के करोलबाग स्थित बामसेफ के दफ्तर पहुंच गईं। यहीं से शुरु हुआ मायावती का राजनीतिक सफर।
बसपा के भीतर विरोध की लहर भी खूब उठी
बसपा में मायावती ने जल्द ही अपनी जगह बना ली। पकड़ ऐसी कि कांशीराम के अलावा अगर किसी की बात सुनी जाती तो वो मायावती ही थीं। वो नम्बर दो की पोजिशन हासिल कर चुकी थीं। मायावती के रास्ते में मुश्किलें भी खूब थी। पार्टी के भीतर से ही विरोधी की आवाजें उठ रही थी। लेकिन मायावती को कोई रोक नहीं सका। दीनानाथ भास्कर, आरके चौधरी, राज बहादुर, मसूद अहमद ऐसे ही शुरुआती नेता थे, जिन्हें मायावती से विरोध के बाद बाहर होना पड़ा। इनके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद और अब स्वामी प्रसाद मौर्य सहित कई काडर बेस नेताओं को पार्टी छोड़नी पड़ी या उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
यहां से शुरु हुआ मायावती का राजनीतिक सफर बसपा सुप्रीमो बनने तक पहुंचा। लेकिन मायावती ने बेहद संघर्ष के साथ इस मुकाम को हासिल किया था। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बाद भारतीय राजनीति में दलितों का सबसे बड़ा चेहरा और मुखर प्रवक्ता कांशीराम ने मायावती को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर उन्हें अंबेडकरवादी खेमे के सबसे प्रभावशाली नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया। यहां से मायावती का राजनीतिक ग्राफ तेजी से ऊपर गया।