बीते रविवार यूपी के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मुख्य आरोपी, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को पुलिस ने कल करीब 12 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने आशीष के खिलाफ मर्डर, एक्सीडेंट में मौत, आपराधिक साजिश और लापरवाही से वाहन चलाने की धाराओं में केस मुकदमा दर्ज किया है। बीते रविवार को हुई हिंसा के बाद से ही आशीष फरार था जो कल शनिवार को सुबह साढ़े दस बजे के करीब पूछताछ के लिए क्राइम ब्रांच के सामने पेश हुआ। बताया जा रहा है कि पूछताछ के दौरान आशीष ने जांच में सहयोग नहीं किया, इसलिए उसे गिरफ्तार कर लखीमपुर जेल भेजा गया है। अब कोर्ट में ही पेशी होगी।
वहीं दूसरी ओर लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में पुलिस की तरफ से हुई लापरवाहियों का कच्चा-चिट्ठा भी सामने आ रहा है। जो कि आरोपियों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
कहां-कहां हुई पुलिस से चूक
1- किसी भी हिंसा या अपराध में सबूत बेहद अहम होते हैं। पुलिस सबसे पहले यह सुनिश्चित करती है कि सबूतों से छेड़-छाड़ न हो। लखीमपुर मामले में तो पुलिस कहीं और ही व्यस्त दिखी। वो सबूत जो अहम साबित हो सकते थे, उन्हें खुला छोड़ दिया गया। दो दिन तक भीड़ उन सबूतों को रौंदती रही। पुलिसबल इस मुख्य काम में व्यस्त रही कि विपक्षी दलों के नेताओं को लखीमपुर में प्रवेश करने से कैसे रोका जाए। अब कोर्ट ने यह हिदायत दी है कि सबूतों की सुरक्षा सही ढंग से की जाए। किसी भी वारदात में खून के धब्बे, फिंगर और फुटप्रिंट, कपड़े, बाल, नाखून आदि अहम साक्ष्य माने जाते हैं। घटनास्थल पर मौजूद हर एक चीज अहमियत रखती है। घटनास्थल से कोई भी चीज अपनी जगह से हिलने पर केस पलट सकता है। लेकिन लखीमपुर मामले में पुलिस को घटनास्थल की याद दो दिन बाद आई।
2- लखीमपुर खीरी में घटी घटना ने पूरे प्रदेश ही नहीं, देश को झकझोर कर रख दिया। पुलिस की लापरवाही यह भी रही कि उसने यह भी पता लगाने की जहमत नहीं उठाई कि केंद्रीय मंत्री के आरोपी बेटे आशीष के पास कितने फोन हैं। यह पता लगाना सबसे मुश्किल हो रहा है कि घटना के वक्त वो बनवीरपुर गांव के दंगल में था या मौका-ए-वारदात पर। दंगल वाली जगह से घटनास्थल तिकुनिया की दूरी करीब 5 किलोमीटर है और दोनों जगह के मोबाइल टावर अलग हैं। ऐसे में सबसे पहले तो पुलिस को आशीष के मोबाइल का लोकेशन चेक करना चाहिए। पुलिस को यह भी नहीं पता कि आशीष कितने मोबाइल फोन रखता था।
3- जब भी कोई बड़ी वारदात होती है तो अपराधी की सबसे पहले यही कोशिश होती है कि वो मौका-ए-वारदात से जल्द से जल्द फरार हो जाए। ऐसे में अपराधी को कोई न कोई सुराग छोड़ने की संभावना अधिक होती है लेकिन इस केस में तो इतनी बड़ी हिंसा के बावजूद पुलिस ने दो दिन बाद घटनास्थल को कब्जे में लिया। अनुमान है कि ऐसे में बहुत सारे फॉरेंसिक सबूत रौंदे जा चुके होंगे।
4- अमूमन लखीमपुर खीरी जैसे मामलों में क्राइम सीन रिक्रिएट किया जाता है। ताकि यह पता लगाया जा सके कि घटना किस तरह हुई होगी। रिक्रिएशन की रिपोर्ट भी अहम साक्ष्य के रूप में गिना जाता है। लेकिन यह बेहद जरूरी होता है कि रिक्रिएशन करने के लिए समान परिस्थितियां रिक्रिएट की जाए। लेकिन लखीमपुर हिंसा मामले में में यह देखने को मिला है कि घटना दोपहर को घटी लेकिन रिक्रिएशन रात में किया गया। ऐसे में इस बात की संभावना कम ही है कि अदालत इस रिक्रिएशन रिपोर्ट को मानेगी।
5- शुरु से ही यह कहा जा रहा है कि हिंसा के दौरान गोलीबारी हुई थी। लेकिन पुलिस ने गोलीबारी की बात को सिरे से खारिज कर दिया था। घटना के चार दिन बाद 6 अक्टूबर को पुलिस और फॉरेंसिक टीम ने जब घटनास्थल को खंगाला तो एक गाड़ी से 315 बोर के 2 मिस हो चुके जिंदा कारतूस बरामद हुए। अब कोई ये बताए कि अगर गोलियां नहीं चलीं तो फिर मिस्ड कारतूस वहां आए कैसे।