Navratri 2021 Day 2: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है- आचरण करने वाली। माता के इस रूप का अर्थ है तप का आचरण करने वाली। देवी मां ब्रह्मचारिणी को सफेद रंग प्रिय है, इनके दाएं हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है।
शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। देवी मां ने भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। यही वजह है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी कहलाया। माता के इस रूप की पूजा करने वाले भक्त हमेशा सुख और समृद्दि का सुख भोगते हैं। मां को बुद्धि और ज्ञान की देवी भी कहा गया है। इनकी आराधना करने वाले व्यक्ति की जिंदगी में संयम और विश्वास बना रहता है। माता की उपासना से जीवन में आने वाली चुनौतियां दूर होती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी को श्वेत रंग बेहद पसंद है। इसलिए माता की पूजा के लिए सफेद रंग के वस्त्र धारण करना सबसे उत्तम माना जाता है। मां को भोग भी सफेद वस्तुओं की ही लगाएं। जैसे शक्कर, मिश्री या पंचामृत। मां को गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है। पूजा में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से फलदायक होता है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा:
जब मां ब्रह्मचारिणी देवी ने हिमालय के घर जन्म लिया था, तब नारदजी ने उन्हें उपदेश दिया था। उपदेश मिलने के बाद उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। घोर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी कहा गया। मां ब्रह्मचारिणी देवी ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों तक निर्जल व निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ा। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम कमजोर हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी देवी की सराहना की। उन्होंने कहा, हे देवी आपकी इस आराधना से आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी।
मंत्र जाप करने के लिए :
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारी रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
दधाना कर पद्मभ्यम् अक्षमाला कमंडलु |
देवी प्रसीदतु मां ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
ओम देवी शैलपुत्रायै नमः
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ||
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
आरती :
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रम्हा शिवरी
ओम जय अम्बे गौरी
मांग सिंदूर विराजत, टिको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना, चंद्रवदन निको
ओम जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजे
ओम जय अम्बे गौरी
केहरी वाहन रजत, खड़ग खप्पर धारी
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखाहारी
ओम जय अम्बे गौरी
कानन कुंडल शोभित, नासाग्रे मोती
कोटिक चंद्र दिवाकर, रजत सम ज्योति
ओम जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती
धूम्रविलोचन नैना, निशिदिन मदमाती
ओम जय अम्बे गौरी
चंड-मुंड सन्हारे, शोणित बीज हरे
मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भय दूर करे
ओम जय अम्बे गौरी
ब्राह्मणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी
अगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी
ओम जय अम्बे गौरी।
चौसठ योगिनी गावत, नित्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू
ओम जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भर्ता
भक्तन के दुःख हर्ता, सुख सम्पति कर्ता
ओम जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी
ओम जय अम्बे गौरी
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति
ओम जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वमी, सुख-संपत्ति पावे