दुनियाभर में बढ़ती गंभीर और क्रोनिक बीमारियों ने वैज्ञानिकों के लिए चिंता का कारण बना दिया है। खराब दिनचर्या और खराब पर्यावरणीय स्थितियों ने स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाला है। लेकिन अब एक नया खतरा सामने आया है, जो और भी चिंताजनक है – माइक्रोप्लास्टिक।
हालिया शोधों में यह पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक अब इंसान के मस्तिष्क में भी जमा हो रहा है। न्यू मैक्सिको यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, मस्तिष्क में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का स्तर किडनी और लिवर से कहीं अधिक बढ़ चुका है। यह अध्ययन उन लोगों पर आधारित था जो 2016 से 2024 के बीच मरे थे, और इसमें यह देखा गया कि मस्तिष्क में प्लास्टिक की सांद्रता पिछले आठ वर्षों में लगभग 50% तक बढ़ चुकी है।
क्या है माइक्रोप्लास्टिक?
माइक्रोप्लास्टिक छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म होते हैं और इंसान के शरीर में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। पहले इन्हें केवल समुद्र और समुद्री जीवों में पाया जाता था, लेकिन अब यह हमारे शरीर के अंदर भी पहुंचने लगा है। शोधकर्ताओं ने पहले माइक्रोप्लास्टिक को शरीर के अन्य अंगों जैसे प्लेसेंटा, रक्त, ब्रेस्ट मिल्क, लार, और यहां तक कि धमनियों में बने प्लाक में भी देखा था।
मस्तिष्क में प्लास्टिक का असर:
शोधकर्ताओं का कहना है कि मस्तिष्क में जमा होने वाले माइक्रोप्लास्टिक की वजह से ब्लड-ब्रेन बैरियर को नुकसान हो सकता है। ब्लड-ब्रेन बैरियर वह संरचना है, जो मस्तिष्क को रक्त से होने वाले नुकसान से बचाती है। जब यह बाधा प्रभावित होती है, तो मस्तिष्क पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
इससे पहले किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया था कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण शरीर में जमा होकर गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इनमें स्ट्रोक, दिल का दौरा, और डिमेंशिया जैसी समस्याएं शामिल हैं।
माइक्रोप्लास्टिक और डिमेंशिया:
माइक्रोप्लास्टिक का असर मस्तिष्क पर बहुत गंभीर हो सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्रेन में जमा हुए माइक्रोप्लास्टिक से मस्तिष्क की संरचना में बदलाव हो सकते हैं, जिससे डिमेंशिया जैसी बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं। यह देखा गया है कि डिमेंशिया के मरीजों के मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा स्वस्थ व्यक्तियों के मुकाबले लगभग छह गुना अधिक पाई गई है।
क्या हैं इसके कारण?
माइक्रोप्लास्टिक की समस्या मुख्यतः वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और प्लास्टिक के अत्यधिक प्रयोग से उत्पन्न हो रही है। यह प्लास्टिक पानी, हवा और भूमि के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग और उसे निपटाने का सही तरीका नहीं होना है।
क्या कर सकते हैं हम?
हम सभी को मिलकर इस समस्या के समाधान की ओर कदम बढ़ाने होंगे। प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और सही तरीके से उसका निपटान करना इस समस्या का समाधान हो सकता है। इसके अलावा, स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर हम माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव को कम कर सकते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक की समस्या एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन सकती है। मस्तिष्क में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का जमा होना भविष्य में कई खतरनाक बीमारियों का कारण बन सकता है। अब समय है कि हम इस समस्या को गंभीरता से लें और इसका समाधान खोजने की दिशा में कदम उठाएं।