माघ मास की अमावस्या के दिन, लोग स्नान, दान, तर्पण और पिंडदान जैसी धार्मिक क्रियाओं में लिप्त होते हैं। इस दिन किए गए इन कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों को शांति मिलती है। मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से न केवल पितर, बल्कि तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मौनी अमावस्या पर मौन साधना का विशेष महत्व है। इस दिन साधक अपनी वाणी के साथ-साथ मन को भी मौन रखते हैं। यह साधना तनाव और मानसिक विकारों से मुक्ति पाने का एक प्रभावी तरीका मानी जाती है। इसके माध्यम से मन की शांति प्राप्त होती है, एकाग्रता बढ़ती है, और ध्यान की अवस्था में जाने में मदद मिलती है। मौन साधना से व्यक्ति का आत्मिक स्तर ऊंचा होता है और यह भगवान से गहरी जुड़ाव की ओर मार्गदर्शन करता है।
मौनी अमावस्या पर मौन साधना के नियम:
- स्नान और ध्यान: इस दिन सबसे पहले गंगा स्नान करें और फिर ध्यान में बैठें।
- मौन व्रत: इसके बाद मौन व्रत रखें और पूरे दिन मौन रहकर जप, तप और ध्यान में लीन रहें।
- मौन खोलना: मौन व्रत समाप्त होने पर केवल धार्मिक शब्दों का उच्चारण करें और मौन को खोले।
- राम का नाम लें: मौन साधना के बाद भगवान राम के नाम का जाप सबसे शुभ माना गया है।
इस वर्ष मौनी अमावस्या 29 जनवरी को मनाई जाएगी, जो माघ माह के अमावस्या तिथि की शुरुआत 28 जनवरी को शाम 7 बजकर 35 मिनट से होगी और समापन 29 जनवरी को शाम 6 बजकर 5 मिनट पर होगा। इस दिन महाकुंभ में दूसरा अमृत स्नान भी आयोजित होगा, जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
मौनी अमावस्या के इस दिन को यदि सही तरीके से मनाया जाए, तो यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खोलता है, बल्कि जीवन में शांति, संतुलन और ऊर्जा का संचार भी करता है।