खरमास, जिसे मलमास भी कहा जाता है, हर साल दो बार आता है। यह समय तब होता है जब सूर्य देव धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं। खरमास की कुल अवधि एक महीने की होती है। इस दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक और शुभ कार्य करने की मनाही होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि खरमास का महत्व क्यों है और इसके पीछे क्या कहानी है? आइए, पौराणिक कथा के माध्यम से इसे समझते हैं।
खरमास: अर्थ और महत्व
संस्कृत में “खर” का अर्थ गधा होता है और “मास” का अर्थ महीना। खरमास का नामकरण सूर्य देव के रथ और गधों से जुड़ी एक पौराणिक घटना से हुआ है। यह समय सौर चक्र और सूर्य की ऊर्जा में आने वाले परिवर्तन का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान सूर्य देव की गति धीमी हो जाती है, जिससे उनका तेज और प्रभाव कम हो जाता है।
खरमास की पौराणिक कथा
मार्कण्डेय पुराण में खरमास से जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन मिलता है।
सूर्य देव हमेशा अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर धरती और ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा सृष्टि के संचालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन लगातार यात्रा करने से सूर्य देव के घोड़े थक जाते थे।
एक बार, सूर्य देव ने देखा कि उनके घोड़ों को विश्राम और पानी की आवश्यकता है। हालांकि, वह रथ रोकने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि ऐसा करने से सृष्टि चक्र बाधित हो सकता था। इसी बीच, उनकी नजर एक तालाब के किनारे चर रहे दो गधों पर पड़ी। उन्होंने अपने घोड़ों को विश्राम देने के लिए गधों को रथ में जोत दिया।
गधों की धीमी गति और खरमास का प्रभाव
गधों को रथ में जोतने के बाद रथ की गति बहुत धीमी हो गई। गधे, घोड़ों की गति और क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकते थे। इसके परिणामस्वरूप, सूर्य देव का तेज भी कम हो गया। यही कारण है कि खरमास के दौरान धरती पर सूर्य की ऊर्जा कमजोर मानी जाती है। इस दौरान मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है, क्योंकि सूर्य की कमजोर ऊर्जा को शुभता के लिए अनुकूल नहीं माना जाता।
मकर संक्रांति और खरमास का अंत
जब मकर संक्रांति का समय आता है, सूर्य देव अपने घोड़ों को रथ में वापस जोत लेते हैं। इससे रथ की गति फिर से तेज हो जाती है और सूर्य की ऊर्जा का प्रभाव पुनः धरती पर प्रकट होता है। मकर संक्रांति से खरमास का अंत होता है, और यह समय शुभ कार्यों के लिए अनुकूल माना जाता है।
खरमास का जीवन पर प्रभाव
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस महीने सूर्य देव की गति धीमी हो जाती है, वह समय मानव जीवन पर भी प्रभाव डालता है। इस दौरान शादी, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे कार्य नहीं किए जाते। इसके बजाय, यह समय भगवान की उपासना, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए उपयुक्त माना गया है।
खरमास का संदेश
खरमास हमें यह सिखाता है कि प्रकृति का हर बदलाव हमारे जीवन पर प्रभाव डालता है। यह समय विश्राम, ऊर्जा संग्रह और आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है। खरमास के बाद, सूर्य देव की ऊर्जा और तेज से न केवल धरती को नया जीवन मिलता है, बल्कि हमारे जीवन में भी सकारात्मक बदलाव आता है।
खरमास केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि प्रकृति और समय का संतुलन है। यह हमें सिखाता है कि हर कठिन समय के बाद एक नई शुरुआत होती है। मकर संक्रांति के साथ सूर्य देव अपनी पूरी ऊर्जा के साथ लौटते हैं, जो हमें अपने जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करने की प्रेरणा देता है।