श्वेता रंजन, नई दिल्ली
पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल गांधी के करीबी रहे जितिन प्रसाद कांग्रेस से लगभग 20 साल पुराना नाता तोड़ कर भगवा दामन थाम रहे हैं। जाहिर सी बात है बीजेपी में शामिल होने का मकसद अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जितिन का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है।
जितिन प्रसाद का भाजपा से जुड़ना ब्राह्मण वोटों के लिहाज से अहम है लेकिन कांग्रेस को इसका भारी नुकसान है। दरअसल भाजपा अपने उपर लगने वाले आरोपों को धोना चाह रही है। बता दें कि मौजूदा दौर में योगी सरकार खुद को मुश्किलों से घिरा महसूस कर रही है। कोरोना महामारी के दौरान प्रदेश में दिखी कुव्यवस्था हो या फिर ब्राह्मणों की उपेक्षा, सरकार पर आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर भाजपा ब्राह्मणों के वर्ग को लुभाने का प्रयास कर रही है।
ब्राह्मण वोट साधने की कोशिश में भाजपा
कमजोर पड़ते कांग्रेस से दामन छुड़ा कर भाजपा से जुड़ने वाले पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया थे, और अब जितिन प्रसाद। दोनों ही राहुल गांघीके बेहद करीबी रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जितिन को पार्टी अहम् जिम्मेदारी सौंप सकती है। चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने यह कवायद शुरू कर दी है कि यूपी में ब्राह्मणों की नाराजगी को दूर किया जाये। और जितिन प्रसाद इसी कवायद का हिस्सा हैं। देखा जाए तो यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का बोलबाला रहा है। प्रदेश की आबादी का 12 फीसदी ब्राह्मण समाज से है। यहां तक कि कई विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों की आबादी 20 फीसदी से भी ज्यादा है। ऐसे में ब्राह्मण वोट हर पार्टी के लिए अहम है।
दरअसल जितिन प्रसाद ब्राह्मण वोटों को लुभाने के लिए सूत्रधार का काम करेंगे। जितिन ने बीजेपी से जुड़ने से पहले पिछले साल जितिन प्रसाद ने ब्राह्मण चेतना परिषद नाम से संगठन बनाया था। लंबे समय से इस संगठन के जरिए वो ब्राह्मणों के बीच का चेहरा बन गये हैं। जितिन ने वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के जरिए जिले वार ब्राह्मण समाज के लोगों से संवाद कर अपनी पहचान गढ़ी है।
पार्टी का चेहरा हो सकते हैं जितिन
माना जा रहा है कि जितिन भाजपा को लेकर ब्राह्मण समुदाय में चल रही नाराजगी को मिटाने के लिए लाए गये है। हालांकि उनकी राजनीतिक समझ को देखते हुए पार्टी उन्हें आगामी चुनाव का चेहरा बना सकती है। यूपी के ब्राह्मणों में एक लीडर के रिक्त स्थान को भरने का जिम्मा जितिन प्रसाद पर हो सकता है। वैसे भी देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी के देहांत और कलराज मिश्र, मुरली मनोहर जोशी अब पार्टी में साख नहीं रखते। और जहा तक बात दिनेश चंद्र शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी और सुब्रत पाठक की है तो पार्टी यह जानती है कि इन नेताओं ने वो पहचान नहीं बनाई है जो जितिन की है।
जितिन के पार्टी जॉइन करने पर रेल मंत्री पीयूष गोयल ने स्वागत भाषण में जितिन की तारीफों के पुल बांध दिए। गोयल ने यह बार बार कहा कि जितिन लंबे समय से यूपी की सेवा करते रहे हैं। इससे साफ है कि यूपी में चुनावी रणनीति को ध्यान में रखते हुए ही बीजेपी ने उन्हें एंट्री दी है।
ब्राह्मण वोट की अहमियत
अगर 2007 के चुनाव की बात करें तो मायावती ने ब्राह्मण+दलित+मुस्लिम गठजोड़ का खेल खेला था। वो पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंची थीं। तब मायावती की पार्टी ने ब्राह्मणो को रिझाने के लिए 86 टिकट ब्राह्मण उम्मीदवारों को दिये थे। यह अलग बात है कि बाद में कई ब्राह्मण नेताओं ने मायावती का साथ छोड़ दिया था और भाजपा से जा मिले थे। ऐसा लगा रहा है कि जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल कर भाजपा मायावती की राह पर चलना चाह रही है।
जितिन और उनके पिता ने भी जाहिर किया था कांग्रेस के प्रति रोष
वैसे तो जितिन का परिवार शुरू से ही कांग्रसी विचारधारा का रहा है लेकिन समय-समय पर परिवार के सदस्यों ने पार्टी के प्रति विरोध भी दिखाया है। जितिन के दादा ज्योति प्रसाद ने पार्टी के सदस्य होने के साथ कई अहम जिम्मेदारियां निभायी थी। पिता कुंअर जितेंद्र प्रसाद ने 1970 में यूपी विधान परिषद के सदस्य के तौर पर राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। वो पांचवीं लोकसभा के लिए 1971 में शाहजहांपुर से चुने गए। वह कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रह चुके थे। लेकिन जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी को चुनौती दी थी। जाहिर सी बात ही जितिन भी लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे। केंद्रीय मंत्री बने, राहुल के करीबी रहे। लेकिन पिछले साल जितिन प्रसाद ने गैर गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की मांग की थी जिस पर उन्हें पार्टी के अन्य नेताओं का विरोध झेलना पड़ा था।