श्वेता रंजन, नई दिल्ली
बिहार की राजनीति में जो कुछ हुआ उसने पलक झपकते हुी बहुत कुछ बदल गया। चाहे केंद्र में सरकार हो या फिर प्रदेश की चिराग पासवान की पार्टी विफल भले ही हुई है पर चर्चा में खूब रही। लोक जनशक्ति पार्टी आज भी चर्चा में है। कल तक जो एक राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था, वो मोहरों की चाल में ऐसा उलझा कि मात हो गया। किसी शतरंज के खेल की भांति। सियासी चालों को राजनीति के मौसम वैज्ञानिक का बेटा भांप नहीं पाया और अपनों ने ही उसे पटखनी दे दी। जी हां मैं बात कर रही हूं एलजेपी में हुए राजनीतिक ‘तख्तापलट’ की।
चिराग पासवान, उन रामविलास पासवान का बेटे हैं, जिन्हें भारतीय राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था। पिछले बरस उनके निधन के बाद चिराग पासवान पार्टी को वो ऊंचाई नहीं दे पाये जो राम विलास पासवान ने दी थी। राम विलास पासवान सियासी मिजाज भांपने में जितने माहिर थे चिराग उतने ही फिसड्डी निकले। चिराग अपनों की नाराजगी को समझ नहीं पाया, भांप नहीं पाया की दल में अगर उलटफेर हो गयी तो सबकुछ बदल जाएगा। दरअसल LJP में बड़ी टूट हो गई है। पार्टी पांच सांसदों- पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज ने मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया है। साथ ही चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया है। उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ संसदीय दल के नेता का जिम्मा भी सौंपा गया है। LJP में चिराग समेत कुल छह ही सांसद थे।
तो चलिये आपको बताते हैं ऐसा क्यों हुआ। दरअसल, चिराग की जड़े हिलाने की कवायद तो पहले ही शुरु हो चुकी थी और इसकी नींव बिहार विधानसभा चुनाव में ही रख दी गई थी।
LJP में इतने बड़े टूट की सबसे बड़ी वजह खुद पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान रहे। उनके अपनों ने ही उनसे नाराजगी के कारण ऐसा किया। और वैसे भी जब पार्टी में टूट की भनक दूसरों तक पहुंचती है तो दूसरे उसका फायदा उठाते ही हैं। यही यहां भी हुआ। JDU के 3 कद्दावर नेताओं ने LJP को तोड़ने में अहम भूमिका निभाई। जिनमें सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और रामविलास पासवान के रिश्तेदार और विधानसभा के उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी के अलावा एक और शख्स का नाम है जिसका खुलासा नहीं हुआ है।
कब पड़ी बगावत की नींव
चिराग को यह अंदेशा कभी नहीं रहा होगा कि उनके अपने चचेरे भाई के सियासी दांव-पेंचो में वो ऐसे उलझेंगे कि बाहर निकलने का रास्ता नहीं होगा। उनके चचेरे भाई और समस्तीपुर से सांसद प्रिंस राज पर उन्हें पूरा भरोसा था। लेकिन चिराग पासवान प्रिंस राज की आंखों में खटकने लगे थे। उस नाराजगी की शुरुआत तब हुई जब उनके प्रदेश अध्यक्ष पद में बंटवारा कर दिया गया था और कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी को बनाया गया था। चिराग को चाचा और हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस को यह बात रास नहीं आई। साथ ही उनकी नाराजगी परवान चढ़ी जब चिराग ने JDU से बगावत की थी। इसके पीछे कारण यह है कि चिराग के चाचा पशुपति पारस पिछली बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री थे और वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेहद करीबी माने जाते थे। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले जब चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका तो उनके रिश्ते भी मुख्यमंत्री के साथ खराब हो गये। चिराग ने अपने चाचा की सलाह भी नहीं मानी कि उनका यह कदम पार्टी के लिए खतरनाक हो सकता है। बिहार की राजनीति पर गौर करें तो पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के कुछ दिन बाद ही एलजेपी में बगावत की शुरुआत हो गई थी। उस दौरान पशुपति पारस का एक पत्र सामने आया, जिसमें उनके नेतृत्व में चार सांसदों के अलग होने का जिक्र था। इस तख्तापलट के लिए चिराग पासवान को खुद जिम्मेदार ठहराया जा रहा हैं।
चिराग ने खोया अपनों का भरोसा
चिराग पासवान का बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अहंकार उन्हें ले डूबा। वो किसी की नहीं सलाह मानने को तैयार नहीं थे। उनका हर फैसला एक तरफा होता था। इससे पार्टी के लोग नाराज चल रहे थे। कुछ तो यह भी वजह बताते हैं कि सौरभ पांडे जो चिराग के बेहद करीबी थे, वो भी वजह बने। दरअसल, चिराग का एक तरफा रवैया बहुत कुछ सौरभ की सलाह पर होते थे। यही वजह की LJP के कई कद्दावर नेता नाराज चल रहे थे।
सूरजभान के छोटे भाई चंदन का विरोध
वैसे तो लोजपा में फूट की बुनियाद काफी पहले रखी गई थी लेकिन किसी तरह पार्टी की नैया डगमग डगमग आगे बढ़ रही थी। क्योंकि रामविलास पासवान के करीबी रहे सूरजभान सिंह ने पार्टी को टूटने से बचाया था। हालांकि सूरजभान भी आहत थे कि चिराग किसी को सुनने को तैयार नहीं थे।जब बात संभाले नहीं संभली तो सूरजभान सिंह के छोटे भाई चंदन सिंह जो कि नवादा से सांसद हैं, उन्होंने भी बगावत कर दी। वहीं लोजपा सांसद महबूब अली कैसर भी नाराज थे, उन्होंने पार्टी की किसी भी बैठक में शामिल होना बंद कर दिया था। वैशाली से सांसद वीणा सिंह रामविलास पासवान की करीबी थीं लेकिन चिराग ने उन्हें वो सम्मान कभी नहीं दिया जो उन्हें पहले मिली थी। कुल मिलाकर एलजेपी में जो ताजा हालात बने हैं, उनके पीछे चिराग पासवान के एकतरफा फैसले हैं।