1- कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच लगातार नए संक्रमितों की संख्या में कमी देखी जा रही है, कल शनिवार को देशभर में 24 घंटे में 2 लाख 38 हजार नए कोरोना संक्रमितों की पुष्टि हुई है और इस दौरान 3 हजार 590 लोगों ने संक्रमण के चलते अपनी जान गंवाई है। महाराष्ट्र में कल कोरोना संक्रमण के 26 हजार 133 नए मामले सामने आए जबकि 682 लोगों की मौत हुई। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना के केस घटकर 2 हजार के करीब आ गए हैं। बीते 24 घंटों में यहां 2 हजार 260 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हुई और इस दौरान 182 लोगों की मौत हुई है। उत्तर प्रदेश में शनिवार को 5 हजार 964 नए संक्रमित मिले और 218 लोगों की मौत हुई। इस बीच एक परेशान करने वाली खबर ये है कि उत्तराखंड में बच्चों में कोविड संक्रमण तेजी से फैल रहा है, यहां सिर्फ 20 दिनों में ही 10 हजार से ज्यादा बच्चे कोविड पॉजिटिव हो चुके हैं। उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग ने जानकारी दी कि एक मई से लेकर 20 मई तक राज्य में नौ साल से कम उम्र वाले 2044 बच्चों और 10 से 19 साल के बीच की उम्र वाले 8661 कोरोना की चपेट में आए हैं। इन 20 दिनों में राज्य में 1,22,949 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर के दौरान बच्चों में कोरोना संक्रमण की दर में बढ़ोत्तरी हुई है। देश भर में बच्चों की आबादी करीब 30 करोड़ है। जिनमें से 4.25 करोड़ बच्चे संक्रमित हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में तीसरी लहर बच्चों के लिए घातक हो सकती है। एक्सपर्ट्स ने तीसरी लहर के दौरान बच्चों को महामारी से बचाने के लिए इलाज की व्यवस्था पर जोर देने की बात कही है।
2- कोरोना संक्रमण चेन को तोड़ने के लिए और वायरस से बचाव का सबसे कारगर तरीका वैक्सीनेशन को बताया जा रहा है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण कराने पर जोर दिया जा रहा है। इसीलिए 1 मई से 18 से 44 साल की उम्र के लोगों का टीकाकरण भी शुरु कर दिया गया है,
हालांकि वैक्सीन की कमी के चलते कई राज्यों में 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के वैक्सीनेशन में रुकावटें आ रही हैं लेकिन केंद्र सरकार अगले 3 दिनों में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को फ्री कोरोना वैक्सीन मुहैया कराने जा रही है ताकि इसकी रफ्तार कम ना हो। इसके साथ ही वैक्सीनेशन प्रोग्राम को तेज करने के उद्देश्य से सरकार ने निजी और सरकारी ऑफिसों में भी टीकाककरण की मंजूरी दे दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि कर्मचारी के साथ-साथ उसके परिजनों को भी ऑफिस में टीका लग सकता है। इसे लेकर राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा गया है।
3- कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच देशभर में स्थिति काफी भयावह देखी गई। हालांकि अब संक्रमण के नए मामलों और मौतों में थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन कुछ ही हफ्ते पहले देश संकट के जिस दौर से गुजर रहा था आज भी उस स्थिति में बहुत सुधार नहीं हैं। कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में सबसे ज्य़ादा आए युवा। आंकड़ों के मुताबिक महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें 45 साल से कम उम्र वालों की हुईं हैं। वहीं हर राज्य में कोरोना से होने वाली मौतों और आईसीयू में भर्ती संक्रमितों की औसत उम्र 50 साल से कम देखी गई। पिछले साल की तुलना में कोविड की मौतों में युवाओं का अनुपात भी बढ़ा। तमिलनाडु के जन स्वास्थ्य निदेशालय ने हाल ही में जो आंकड़े जारी किए हैं उनके मुताबिक संक्रमण की दूसरी लहर में बिना किसी गंभीर बीमारी के युवाओं की मौत ज्यादा हुई है। दूसरी लहर के बीच देश में युवाओं की मौत के विशेषज्ञों ने तीन बड़े कारण माने हैं, पहला हैप्पी हाइपोक्सिया, जिसमें शरीर में ऑक्सीजन का लेवल गिरने से मरीज को सांस लेने में परेशानी नहीं होती है और इलाज में देरी से मरीज के बचने की उम्मीद भी घट जाती है। दूसरा बड़ा कारण माना गया वैक्सीनेशन। 45 साल से कम्र उम्र के लोगों का वैक्सीनेशन नहीं हुआ था और ऐसे में बिना कोविड नियमों का पालन किए घूमना फिरना, संक्रमण का कारण बना। और तीसरा सबसे बड़ा कारण रहा नए वेरिएंट्स और उनका प्रभावशाली होना। जिसकी वजह से संक्रमित लोगों में मौंते ज्याद हुईं।
4- कोविड संक्रमण से ठीक हुए लोगों के लिए एक अच्छी खबर ये है कि ठीक होने के एक साल बाद भी एंटीबॉडी शरीर में मौजूद रहते हैं। जापान की योकोहामा सिटी यूनिवर्सिटी ने संक्रमित हुए करीब 250 लोगों पर एक स्टडी के बाद ये दावा किया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने वाले 96 फीसदी मरीजों में एक साल बाद भी एंटीबॉडी मौजूद रहीं। जिन लोगों पर ये स्टडी की गई उन सभी लोगों की उम्र 21 से 78 साल के बीच है जो पिछले साल फरवरी से अप्रैल के बीच कोविड पॉजिटिव हुए थे। इनमें जिन मरीजों में कोविड के ज्यादा लक्षण पाए गए उनमें ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी मौजूद रहीं। वहीं कम लक्षण वाले और जिनमें लक्षण दिखे ही नहीं ऐसे 97 फीसदी मरीजों के संक्रमण से ठीक होने के बाद भी 6 महीने तक एंटीबॉडी मौजूद रहीं। इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में कोविड पॉजिटिव हुए लोगों का टीकाकरण करना बेहद जरूरी है, खासकर ऐसे लोगों का जिनमें संक्रमण के समय थोड़े या बिल्कुल भी लक्षण नहीं थे, क्योंकि ऐसे लोगों का वैक्सीनेशन न होने की स्थिति में उन्हें कोरोना के ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका और ब्राजीलियन वैरिएंट से संक्रमण का खतरा है।
5- कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों में ब्लैक फंगस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इससे बचाव और इलाज के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा तमाम तरह के निर्देश व एडवायजी जारी की गई हैं और अब तक देश के 12 राज्यों में इसे महामारी घोषित किया जा चुका है। इसी बीच एम्स के सीनियर न्यूरोसर्जन डॉ. पी शरत चंद्र का दावा है कि कोरोना के इलाज के 6 सप्ताह के अंदर मरीजों को ब्लैक फंगस का सबसे ज्यादा खतरा होता है और इसके मुख्य कारणों में बेकाबू डायबिटीज, टोसिलिजुमैब के साथ स्टेरॉयड का इस्तेमाल, मरीजों का सप्लीमेंटल ऑक्सीजन लेना बताया गया है, यानि मरीज के साथ इनमें से कोई भी समस्या है तो उसे ब्लैक फंगस का सबसे ज्यादा खतरा होता है। डॉ. पी शरत चंद्र ने बताया कि सीधे सिलेंडर से ठंडी ऑक्सीजन देना, मरीजों के लिए ज्यादा घातक हो सकता है। वहीं ब्लैक फंगस के मामले कम करने के लिए ज्यादा जोखिम वाले मरीजों को एंटी-फंगल दवा पॉसकोनाजोल दी जा सकती है। वहीं उन्होंने एक ही मास्क को लंबे समय तक इस्तेमाल न करने और कपड़े के मास्क को हर दिन धोने की बात भी कही। क्योंकि कपड़े का मास्क अगर नमी वाली जगह पर रखा है तो इससे फंगस लग सकता है। ऐसे में अहतियातन हर दिन मास्क बदलें और एन-95 मास्क को भी 5 बार ही इस्तेमाल करें। आपको बता दें कि देश के 15 राज्यों में अबतक ब्लैक फंगस के 9 हजार 300 से ज्यादा मामले सामने आए हैं जिनमें सबसे ज्यादा 5 हजार मामले गुजरात में 1500 मामले महाराष्ट्र में और राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी 700-700 से ज्यादा मामले मिले हैं। ब्लैक फंगस से देश में अब तक 235 लोगों की मौत हो चुकी है।