Sweta Ranjan, Gurugram
गुरुग्राम के पॉश इलाके में मंगलवार को एक ऐसी घटना सामने आई जिसने समाज में बढ़ते गुस्से और असंवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए। डीएलएफ फेज-3 की एक सोसायटी में बच्चों के खेल-खेल में हुए मामूली झगड़े पर एक पिता ने अपना आपा खो दिया। नतीजा यह हुआ कि एक 12 साल के बच्चे पर उसने अपनी लाइसेंसी पिस्तौल तान दी। यह शर्मनाक घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई और अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है।
खेल का मैदान बना डर का अड्डा
घटना उस समय हुई जब सोसायटी के पार्क में दो 12 साल के बच्चे खेल रहे थे। खेल-खेल में उनमें झगड़ा हो गया। एक बच्चे ने यह बात अपने पिता को बताई। बजाय बच्चों की नादानी समझकर मामले को शांत करने के, पिता आगबबूला हो गया। उसने आव देखा न ताव, अपनी लाइसेंसी पिस्तौल उठाई और पार्क की ओर चल दिया।
पत्नी ने रोकने की कोशिश की, फिर भी नहीं माने
आरोपी की पत्नी ने जब अपने पति को पिस्तौल लेकर बाहर जाते देखा, तो वह घबरा गई। उसने उसे रोकने और घर वापस लाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन गुस्से में बेकाबू पिता ने उसकी बात अनसुनी कर दी और सीधे पार्क पहुंचकर बच्चे पर पिस्तौल तान दी।
बच्चे और मां-बाप के लिए खौफनाक पल
पार्क में मौजूद बच्चे सहम गए। आरोपी न केवल पिस्तौल लेकर आया, बल्कि बच्चे को गालियां भी दीं। आरोपी की पत्नी ने किसी तरह बच्चे को हटाकर स्थिति को संभालने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल बच्चे बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया।
पुलिस की कार्रवाई, लेकिन सवाल बरकरार
घटना की शिकायत मिलने पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 351 (2) और आर्म्स एक्ट की धारा 30 के तहत एफआईआर दर्ज की गई। चूंकि यह जमानती अपराध था, इसलिए आरोपी को रिहा कर दिया गया। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि आरोपी का पिस्तौल लाइसेंस रद्द किया जाएगा।
गुस्सा और असंवेदनशीलता का बढ़ता खतरा
यह घटना केवल एक अपराध नहीं है, बल्कि समाज में बढ़ते गुस्से और असंवेदनशीलता का आईना है। बच्चों के झगड़े को सुलझाने की जगह, इसे हिंसा का रूप देना न केवल खतरनाक है, बल्कि हमारी मानसिकता पर भी सवाल खड़े करता है।
क्या हम गुस्से पर काबू करना भूल गए हैं?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम गुस्से पर काबू पाना भूल चुके हैं? बच्चों के झगड़े जैसी छोटी बातों पर पिस्तौल तानना हमारे समाज में धैर्य और समझदारी की कमी को उजागर करता है।
सवाल उठाने का वक्त
क्या हम ऐसी घटनाओं से सबक लेंगे? क्या बच्चों को स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण देने के लिए हम अपने गुस्से और अहंकार पर काबू पाएंगे? यह घटना समाज के हर व्यक्ति के लिए एक चेतावनी है कि गुस्से में लिए गए फैसले सिर्फ क्षणिक नहीं, बल्कि स्थायी दाग छोड़ सकते हैं।