90 के दशक का खूंखार नाम था वीरप्पन। बड़ी मूंछे, उचकी हुई भौंहें उसकी पहचान थी। चंदन का कुख्यात तस्कर था वो। वीरप्पन को पुलिस की एक स्पेशल टीम ने आज ही के दिन मार गिराया था। 18 अक्टूबर, 2004 को उसकी कहानी जब खत्म हुई तो लोगों ने विश्वास ही नहीं हुआ। लोग कहा करते थे उसे कोई मार नहीं सकता, पुलिस उसे पकड़ ही नहीं सकती। तमिलनाडू के जंगलों के आसपास के लोगों के लिए कभी तो वो रॉबिनहुड था, कभी निर्दयी हत्यारा।
वीरप्पन के बारे में यह कहा जाता था उसने कुल दो हजार हाथी मारे ताकि उनके दांतों की तस्करी की जा सके। कहते हैं कि उसने कुल 10 हजार टन चंदन की लकड़ी की तस्करी की थी, जिसकी कीमत उस समय 2 अरब रुपए थी। उसने हजारों चंदन के पेड़ काट डाले, ना जाने कितने ही लोगों की उसने हत्या की।
वीरप्पन का पूरा नाम था कूज मुनिस्वामी वीरप्पन। उसका जन्म 18 जनवरी 1952 को कर्नाटक के गांव गोपिनाथम में हुआ था। उसने कुल 184 लोगों की हत्या की, जिसमें 97 पुलिसवाले थे। उसे पकड़ने के लिए सरकार ने 5 करोड़ का इनाम रखा था। वीरप्पन को मारने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसे तलाशने में 100 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। वीरप्पन की बर्बरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस दर से कि जंगल में आवाज़ ना गूंजे, उसने अपनी खुद की बच्ची का गला दबा डाला था। 1993 में वीरप्पन की एक लड़की पैदा हुई थी। तब पुलिस वीरप्पन को जंगल-जंगल तलाश रही थी। वो अपने सौ साथियों के साथ जंगल में छिपा था। अपनी बच्ची के रोने से वो पकड़ा ना जाए इस लिए उसने अपनी ही बेटी का गला दबाकर हत्या कर दी। 1993 में कर्नाटक एसटीएफ़ को जब मारी माडुवू में एक जगह ज़मीन थोड़ी उभरी हुई दिखी तो शक हुआ। खुदाई करने पर एक नवजात बच्ची का शव मिला।
लेखकों और फिल्मकारों ने किताबों और फिल्मों के माध्यम से वीरप्पन की जिंदगी को लोगों तक पहुंचाने का काम किया है लेकिन वीरप्पन की मौत के साथ दफन हुए अब भी कई राज हैं।
बचपन में विरैय्या के नाम से जाना जाने वाले वीरप्पन ने 1962 में 10 साल की उम्र में पहला अपराध किया था। बहुत गरीब पीरप्पन ने एक तस्कर का कत्ल कर दिया था। साथ ही उसने फॉरेस्ट विभाग के भी तीन अफसरों को भी मौत के घाट उतारा था। उसके गांव वाले कहते हैं कि फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने ही उसे स्मगलिंग के लिए उकसाया था।
वीरप्पन ने शादी भी रचाई थी, अपनी पत्नी का हाथ अपने ससुर से उसने बिल्कुल फिल्मी अंदाज में मांगा था। जब वो जंगल जंगल भटक रहा था तो उसने पत्नी को एक शहरी इलाके में रहने भेज दिया था। गरीब वीरप्पन पुलिस, राजनीति और भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसकर तस्कर वीरप्पन की शक्ल अख्तियार कर चुका था।
तस्करी, अपहरण, फिरौती, हत्या वीरप्पन की जिंदगी का हिस्सा थीं। 1997 में सरकारी अफसर समझकर वीरप्पन ने जिन दो लोगों को किडनैप किया वो फोटोग्राफर निकले। 14 दिन तक खूंखार वीरप्पन के साथ जंगलों में रहने वाले इन लोगों ने बाद में इस घटना पर किताब भी लिखी थी, ‘बर्ड्स, बीस्ट्स एंड बैंडिट्स’।
1987 में वीरप्पन ने देश को तब हिलाकर रख दिया जब उसने चिदंबरम नाम के एक फॉरेस्ट अफसर को किडनैप किया। कुछ वक्त बाद उसने नृशंसता की हद दिखाई. एक पुलिस टीम को उड़ा दिया. जिसमें 22 लोग मारे गए। यह तब हुआ जब गोपालकृष्ण नाम के एक पुलिस अधिकारी वीरप्पन को पकड़ने के लिए जंगल की ओर निकले। वे जंगल में पलार पुल पार कर रहे थे, तभी उनकी जीप खराब हो गई। उन्होंने जीप को वहीं छोड़ा और पुल पर तैनात पुलिस से दो बसें लेकर जंगल की ओर चले गए। पहली बस में गोपालकृष्ण के साथ 15 मुखबिर, 4 पुलिस जवान और 2 वन गार्ड मिलाकर कुल 21 लोग सवार थे। बारूदी सुरंगो से वीरप्पन ने बस को उड़ा दिया था। चारों तरफ लाशों के चिथड़े बिखर गए। इस घटना ने समूचे देश को हिला कर रख दिया था। फिर 2000 में वीरप्पन ने कन्नड़ फिल्मों के हीरो राजकुमार को किडनैप कर लिया, रिहाई के लिए फिरौती रखी 50 करोड़ की। राजकुमार 100 से अधिक दिनों तक वीरप्पन के चंगुल में रहे। इस दौरान वीरप्पन ने कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों राज्य सरकारों के पेशानी पर पसीना ला दिया था। मोटी रकम लेकर उसने अभिनेता को छोड़ा था।
वीरप्पन खुद को रॉबीनहुड की इमेज भी देना चाहता था। उसने बॉर्डर के इलाकों के लिए वेलफेयर स्कीम की मांग की थी। जिस रात वीरप्पन मारा गया उसके अगले दिन पोस्टमार्टम हाउस के बाहर उसकी लाश को देखने को 20 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी। वीरप्पन को कुल 184 लोगों का हत्यारा बताया जाता है, जिनमें से 97 पुलिसवाले थे।
साल 2003 में विजय कुमार को STF चीफ बनाया गया था। विजय कुमार ने STF चीफ बनते ही वीरप्पन को पकड़ने की रणनीति तैयार की। उन्होंने वीरप्पन की गैंग में अपने आदमी शामिल करा दिए। करीब एक साल बाद 18 अक्टूबर 2004 को वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने जा रहा था। पपीरपट्टी गांव में वो पहले से तैनात एंबुलेंस में वो सवार हो गया। वीरप्पन को अंदेशा नहीं था कि एंबुलेंस पुलिस की ही थी और उसे STF के लोग चला रहे थे। वो भी STF की प्लांट की हुई थी। जिसका कोड नेम था ककून। एक ऐसा ककून जिसमें घुसने के बाद वीरप्पन दुबारा न उड़ पाए। रास्ते में अचानक ही ड्राइवर ने एंबुलेंस रोकी और भाग गया। यह पहले से की गई प्लानिंग के हिसाब से हो रहा था। पुलिस बल वहां एंबुलेंस का इंतजार कर रही थी। जैसे ही एंबुलेंस रुकी पुलिस ने उसे घेरकर एनकाउंटर कर दिया। एनकाउंटर 20 मिनट तक चला था। वीरप्पन वहीं ढेर हो गया।
एनकाउंटर थमने के बाद पुलिस बल ने जब अंदर झांका तो पहली नजर में लगा वो वीरप्पन, नहीं कोई और था। उसकी पहचान उसकी ताव खाई मूंछें और उचकी हुई भौहें गायब थीं। हमेशा एक ही तरह के डकैतों वाले कपड़े में दिखने वाले वीरप्पन ने सादे कपड़े पहन रखे थे, कमर पर बेल्ट भी नहीं थी। वीरप्पन ने पुलिस से बचने के लिए अपनी वेशभूषा बदली थी।