अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर मंदिर होने के दावे पर विवाद बढ़ता जा रहा है। इस विवाद पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंशज और उत्तराधिकारी सैयद नशरूद्दीन चिश्ती ने अपनी चिंता जाहिर की है। उन्होंने इसे देशहित और समाज के लिए नुकसानदायक बताया।
ख्वाजा साहब के वंशज ने क्या कहा?
सैयद नशरूद्दीन चिश्ती ने कहा, “आजकल हर कोई उठकर दरगाह और मस्जिदों को मंदिर बता रहा है। यह परिपाटी बिल्कुल गलत है। अजमेर दरगाह न केवल हिंदुस्तान बल्कि पूरी दुनिया के मुसलमानों और अन्य धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र रही है।” उन्होंने कहा कि यह दरगाह करीब 850 साल पुरानी है और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 1195 में हिंदुस्तान आए थे।
सस्ती लोकप्रियता के लिए विवाद?
चिश्ती ने कहा कि कुछ लोग सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए ऐसे दावे कर रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि ऐसे लोगों पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून बनाया जाए। चिश्ती ने संभल मामले का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के विवाद समाज और देश को नुकसान पहुंचाते हैं।
क्या है मामला?
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने यह याचिका दायर की थी। इसमें दावा किया गया है कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था। याचिका में कहा गया है कि मंदिर में पूजा और जलाभिषेक हुआ करता था। साथ ही, याचिकाकर्ताओं ने दरगाह परिसर के गर्भगृह और बुलंद दरवाजे में मंदिर के मलबे के अंश होने का प्रमाण दिया है।
सबूत के तौर पर पेश की गई किताब
इस मामले में हर विलास शारदा द्वारा वर्ष 1911 में लिखी गई एक पुस्तक का हवाला दिया गया है। पुस्तक में दावा किया गया है कि दरगाह का स्थान पहले शिव मंदिर था। यही नहीं, हिंदू पक्ष ने पुरातत्व विभाग द्वारा सर्वे की मांग भी की है, ताकि तहखाने में गर्भगृह होने की पुष्टि की जा सके।