West Bengal Elections: वो साल 2007 था जब बंगाल की सियासत में नंदीग्राम अहम मुद्दा बन कर उभरा। एक ऐसा मुद्दा जिसने बंगाल की सियासत का चेहरा बदल दिया। 34 वर्षो का वामपंथी शासन खत्म हुआ। डेढ़ दशक के बाद अब हालात कमोवेश एक जैसे ही हैं। एक बार फिर वही नंदीग्राम सत्ता और विपक्ष के सामने चुनौती है। साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान खूब लगे जय श्रीराम के नारे ने भी प्रदेश की मुखिया और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।
नंदीग्राम की चुनौती?
नंदीग्राम की जमीन से ही ममता बनर्जी को बंगाल की सियासत में एक नई पहचान मिली। नंदीग्राम आंदोलन ने ही ममता बनर्जी को दीदी बना दिया। यह वही जमीन है जहां ममता ने एक जुझारू जननेता के तौर पर अपनी पहचान गढ़ी। लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम ममता के लिए एक कसौटी बन चुका है। अगर तो ममता इस चुनाव में यहां के वोटरों का दिल जीत लेती हैं तो यह उनकी उपलब्धी मानी जाएगी। नंदीग्राम से ही कभी ममता के भरोसेमंद रहे सुवेंदु अधिकारी उन्हें चुनौती दे रहे हैं। ममता और सुवेंदु 21 वर्षों के साथ के बाद आमने-सामने हैं। सुवेंदु, जो कि इस जगह से विधायक है दीदी का ना सिर्फ सामना करेंगे बल्कि नंदीग्राम विधानसभा सीट से ममता के चुनाव लड़ने के एलान के बाद 50 हजार मतों से ममता को हराने, अन्यथा राजनीति छोड़ने की बात भी कर डाली है। भाजपा के लिए यह नाक का सवाल है। ममता को किसी भी कीमत पर हराना है। ममता को अपने अस्तित्व के संकट ने घेर रखा है।
नंदीग्राम तब और अब
नंदीग्राम के लोगों के लिए भी यह असमंजस की स्थिति होगी। तृणमूल कांग्रेस के दो प्रमुख चेहरे ममता और सुवेंदु विधानसभा चुनाव आमने-सामने होंगे। वो ममता और सुवेंदु जो कभी नंदीग्राम में ही साथ-साथ दिखते थे। जो कभी एक साथ, एक मंच पर एक दूसरे के हौसले को बढ़ाते और आवाज़ को बल देते थे। एक साथ तोमार नाम, अमार नाम, नंदीग्राम नंदीग्राम (तुम्हारा नाम, मेरा नाम, नंदीग्राम नंदीग्राम) को नारे लगाते थे।
बता दें कि साल 2007 में नंदीग्राम को भू-अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से गुज़रना पड़ा था। दरअसल, उस वक्त की वामपंथ सरकार ने इंडोनेशिया की कंपनी सेलेम समूह के प्रस्तावित कैमिकल हब के लिए नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण की योजना बनाई थी। जिसके बाद नंदीग्राम सुर्खियों में छाया रहा। यहां हिंसक आंदोलन हुए जिसके बाद ममता ने नंदीग्राम के खूनी संघर्ष को मुद्दा बनाया और अपनी जड़े मजबूत की।
नंदीग्राम अहम क्यों?
नंदीग्राम फतह करना ममता के लिए चुनौती है, वहीं शुभेंदु हर जोड़-तोड़ कर इस सीट को हासिल करना चाहेंगे। ममता को हराना भाजपा में उनके राजनीतिक कद को बढ़ावा मिलेगा। तो चलिए समझते हैं कि संप्रदाय के आधार पर नंदीग्राम कैसा है। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 70 फीसद हिंदू और 30 फीसद मुस्लिम आबादी है। मुस्लिम वोटरों की हमदर्द रही ममता को यहां करारा झटका इसलिए भी लग सकता है क्योंकि अब यहां जय श्रीराम का नारा सुनाई देने लगा है। वैसे भी इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि यदि भाजपा यदि बंगाल में सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच जाती है तो सुवेंदु अधिकारी मुख्यमंत्री के रुप में सत्तासीन हो सकते हैं।
इंडियन सेकुलर फ्रंट से ममता के वोट बैंक को झटका
ममता के एक और काफी से उन्हें झटका लगा है। नंदीग्राम-सिंगुर आंदोलन में साथ देने वाले फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने नई राजनीतिक पार्टी इंडियन सेकुलर फ्रंट (आइएसएफ) बनाई है। अब्बास हैदराबाद के सांसद असदउद्दीन ओवैसी से मिले और बस कुछ ही दिनों में उन्होंने नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। अब मुस्लिम वोटरों के हितैषी के रुप में आइएसएफ के आने से ममता की मुसीबतें बढ़ गई हैं। जाहिर सी बात है मुस्लिम वोट बंटेगा और ममता की मुश्किलें बढ़ेंगी। ममता की स्थिति फिलहाल यही है कि वह चारों ओर से एक से एक मुश्किलों से घिरती जा रही है।
जय श्री राम
बंगाल में गूंजे जय श्रीराम के नारे ने ममता को हिला कर रख दिया। शनिवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में गूंजे जय श्रीराम नारे पर विरोध जताते हुए ममता ने भाषण देने से इन्कार कर दिया। ममता ने जिस तरह प्रतिक्रिया दी उससे तो यह लगता है कि ममता घबरा गई हैं। वोटरों का बदलता मिज़ाज उन्हें भयभीत कर रहा है। बंगाल की धरती पर जय श्री राम का नारा अब सियासी रंग ले चुका है। ममता को इस विरोध पर कांग्रेस और वाम नेताओं का साथ मिला लेकिन भाजपा इस ममता की नाराज़गी को तुष्टीकरण से जोड़ रही है।