25 दिसंबर 2024 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती मनाई जा रही है। देश के राजनीतिक इतिहास में एक कुशल राजनेता और दूरदर्शी नेता के रूप में जाने गए अटल जी का जीवन प्रेरणा का स्रोत रहा है। उनका योगदान केवल राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि साहित्य और कविता के क्षेत्र में भी उनकी एक अलग पहचान है। अटल जी की कविताएं मानवीय भावनाओं, संघर्ष, संकल्प और आत्मनिर्भरता की अद्भुत अभिव्यक्ति हैं। उनकी लेखनी पत्थर में भी जान फूंकने की क्षमता रखती है।
इस खास मौके पर, आइए उनकी लिखी 5 कालजयी कविताओं के माध्यम से उनके विचारों और प्रेरणा को याद करें।
1. मौत से ठन गई
यह कविता जीवन के प्रति अटल जी के अदम्य साहस और निडरता को दर्शाती है। उन्होंने मौत जैसी निष्ठुर सच्चाई के सामने भी हार न मानने की भावना को अपने शब्दों में पिरोया:
“मौत से ठन गई
जूझने का मेरा इरादा न था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था…”
यह कविता हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, उनका सामना निडरता और आत्मविश्वास से करना चाहिए।
2. आओ फिर से दिया जलाएं
यह कविता अटल जी के संकल्प और सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रतीक है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी आशा की ज्योति जलाने का आह्वान किया:
“आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा…”
यह कविता हमें जीवन में हर हालात में उम्मीद बनाए रखने और नए सिरे से शुरुआत करने की प्रेरणा देती है।
3. जीवन बीत चला
जीवन की क्षणभंगुरता और समय की अनमोलता को दर्शाने वाली इस कविता में अटल जी ने हर पल को जीने की सीख दी है:
“कल कल करते आज
हाथ से निकले सारे
भूत भविष्यत की चिंता में
वर्तमान की बाजी हारे…”
यह कविता हमें वर्तमान को महत्व देने और हर पल को सार्थक बनाने की प्रेरणा देती है।
4. गीत नया गाता हूं
यह कविता संघर्ष और पुनर्जन्म की भावना को व्यक्त करती है। जीवन की कठिनाइयों से हार न मानने का संदेश इसमें छिपा है:
“हार नहीं मानूँगा
रार नई ठानूँगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ…”
अटल जी के ये शब्द हमें अपने सपनों और लक्ष्यों को लेकर हमेशा सकारात्मक और दृढ़ रहने की प्रेरणा देते हैं।
5. गीत नहीं गाता हूं
यह कविता जीवन की सच्चाइयों और समाज में व्याप्त विसंगतियों का बखूबी चित्रण करती है। यह उनके संवेदनशील हृदय और विचारशील दृष्टिकोण का प्रमाण है:
“बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज, सच से भय खाता हूँ…”
यह कविता हमें सच को स्वीकारने और समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस देती है।









