बिहार विधान सभा चुनाव 2020 (Bihar election results 2020) के नतीजों के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) अपने अगले कदम पर काम कर रहे हैं। बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM पार्टी ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इनमें से 5 सीटों – कोचाधामन, बहादुरगंज, जोकीहाट, अमौर और बायसी – पर उनकी पार्टी को जीत हासिल हुई है। ओवैसी की AIMIM पार्टी ने इन सीटों पर जीत हासिल कर ‘वोटकटवा’ की श्रेणी में आ गये हैं। इस फतेह के बाद ओवैसी अब अगली रणनीति पर काम कर रहे हैं।
निशाने पर बंगाल
बिहार में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के बाद ओवैसी अब पश्चिम बंगाल पहुंचना चाहते हैं। ओवेसी ने कहा है कि उनकी पार्टी अब बंगाल में भी किस्मत आजमाएगी। हैदराबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ओवैसी ने कहा, ‘मैं बंगाल का चुनाव भी लड़ूंगा, क्या करेगा कोई?’
महागठबंधन से तनातनी
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू महागठबंधन का हिस्सा था, तो कह सकते हैं कि तब ओवैसी की पार्टी द्वारा जीती सभी 5 सीटें महागठबंधन के पास थीं। 2020 के चुनाव में रानीगंज सीट पर भी महागठबंधन के उम्मीदवार की हार का अंतर मात्र 2,304 था। इस सीट से AIMIM को 2,412 वोट मिले हैं। देखा जाए तो ओवैसी की पार्टी ने महागठबंधन को 6 सीटों पर नुकसान पहुंचाया है। महागठबंधन ने ओवैसी पर वोटकटवा की भूमिका निभाने के आरोप दागे हैं। ऐसे में ओवैसी महागठबंधन के आरोपों से नाराज हैं। ओवैसी ने कहा, अगर हमारी वजह से महागठबंधन को नुकसान हुआ है तो फिर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में क्यों हार हुई? वहां तो हमारी पार्टी चुनाव नहीं लड़ी। ओवैसी ने यह भी कहा, ‘हमारा हाल तो रजिया जैसी है जो गुंडों में फंस गई है. कोई कहता है हम एंटी नेशनल हैं और कोई कहता है हम वोट काट रहे हैं. इसके बावजूद बंगाल का चुनाव लड़ूेंगे।’ 2015 के चुनाव में ओवैसी की पार्टी की बिहार में बिलकुल ही खास्ताहाल में थी। तब पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। लेकिन 2020 में AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत हासिल की है।
कैसा होगा बंगाल में असर
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने के ऐलान पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच घबराहट पैदा है सकती है। ऐसा होने पर TMC की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है।
राज्य में 2011 के चुनाव की बात करें तो वाम मोर्चे को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का साथ मिला है। हालांकि एआईएमआईएम के बंगाल के रुख पर TMC का कहना है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदायों तक ही सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह प्रतिशत है। 294 सदस्यीय विधानसभा में लगभग 100-110 सीटों पर एक निर्णायक कारक हैं, जो 2019 तक, अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे है।
बता दें कि पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं जो कश्मीर के बाद दूसरे नंबर पर हैं। तृणमूल के साथ रहे बंगाल के मुस्लिम मतदाता अब तक भगवा दल के विरोध में ममता के साथ रहे हैं।
यकिनन एआईएमआईएम के बंगाल के चुनावी समर में कूदने के बाद से राज्य के समीकरण बदल सकते है। फिलहाल एआईएमआईएम ने राज्य के 23 जिलों में से 22 में अपनी इकाईयां स्थापित की हैं। बता दें कि एआईएमआईएम और टीएमसी की इस जंग की नींव पिछले साल नवम्बर में ही रखी जा चुकी थी। एआईएमआईएम ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ रैली में ममता बनर्जी पर निशाना साध कर यह जाहिर कर दिया था।