कोरोना की दूसरी लहर में भारत में वैक्सीन सो लेकर ऑक्सीजन और एंटीवायरल ड्रग रेमेडिसविर (Remdesivir) को लेकर मचे त्राहिमाम को पूरी दुनिया ने देखा। रेमेडिसविर की डिमांड इतनी बढ़ी कि 5000 रुपये की कीमत वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन 70-80 हजार तक की कीमत में बिका। इस इंजेक्शन की कालाबाजारी भी शुरू हो गई, साथ ही नकली इंजेक्शन भी बाजार में बिकने लगे। इस मारामारी में लोगों ने रेमेडिसविर हासिल करने के लिए क्या-क्या नहीं किया।
लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने Gilead Sciences के इस एंटीवायरल ड्रग रेमेडिसविर को अपनी ‘Prequalification List’ लिस्ट से बाहर कर दिया है। बता दें कि WHO ‘Prequalification List’ विकासशील देशों द्वारा खरीद के लिए बेंचमार्क के रूप में उपयोग की जाने वाली दवाओं के लिए तैयार करती है। यह एक आधिकारिक सूची है।
रेमेडिसविर का सूची से सस्पेंड किया जाना यह बताता है कि WHO कोरोना के इलाज के लिए रेमेडिसविर दवा खरीदने की सिफारिश नहीं देता है। बता दें कि शुक्रवार को भी WHO ने कहा था कि रेमेडिसविर का इस्तेमाल कोविड रोगियों के इलाज के लिए नहीं किया जाना चाहिए। WHO ने यह भी चेताया था कि मरीज चाहे कितना ही बीमार क्यों न हों इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह इंजेक्शन वायरस से लड़ने में कारगर है।
बता दें कि बीते कुछ दिनों से इस बात की आशंका जताई जा रही है कि भारत में रेमेडिसविर को कोविड प्रोटकॉल से बाहर किया जा सकता है। Covid-19 Treatment में Plasma Therapy को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने प्लाजमा थेरेपी को भी प्रोटोकॉल से बाहर कर दिया है। प्लाज्मा थेरेपी को कोविड के उपचार प्रोटोकॉल से हटाने के बाद अब रेमडेसिविर को भी हटाने पर विचार किया जा रहा क्योंकि कोविड-19 के मरीजों के इलाज में उसके प्रभावी होने का सबूत नहीं मिले हैं। गंगा राम अस्पताल के चेयरपर्सन डॉक्टर डीएस राणा ने भी कहा था कि रेमेडिसविर के इलाज में प्रभावी होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल होनेवाली अन्य दवाइयों की बात करें, तो रेमडेसिविर के बारे में इस तरह के सबूत नहीं हैं कि ये कोविड-19 के इलाज में काम करती है।”