स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
अन्य गतिविधियों की तरह पटरी पर लौटी पढ़ाई भी
कोरोना काल में 10 महीने से बंद पड़े शिक्षा के मंदिरों में अब फिर से विद्यार्थियों का आना शुरु हो गया है, कोविड गाइडलाइन्स के साथ ही सही, लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में सरकारों को स्कूल खोलने की अनुमति के बाद शिक्षकों के साथ साथ बच्चे भी स्कूल आ रहे हैं।
मेंटली रिलैक्स्ड भी, स्ट्रेस्ड भी
स्कूल खुलने के बाद जहां स्टूडेंट्स काफी रिलेक्स फील कर रहे हैं तो वहीं कोविड 19 के खतरे को लेकर अभिभावकों के मन में थोड़ा डर भी है। पिछल 10 महीने से बंद स्कूलों को लेकर यूं तो सोशल मीडिया पर बच्चों के लेकर बहुत से जोक्स भी आए जैसे- “मजाल है जो बच्चों ने एक बार भी कहा हो कि स्कूल खोले जाएं”, लेकिन वास्तविकता ये है कि महीनों से घरों में बंद बच्चे, स्कूल पहुंच कर वाकई काफी खुश हैं। दोस्तों से मिलना, बातें करना, खेलना-कूदना ये सब पढ़ाई के साथ साथ स्कूल परिसर में विद्यार्थियों की जीवनचर्या थी, जो कोरोना काल ने स्कूली बच्चों से छीन ली थी। बच्चों के सोने जगने, खाने पीने यहां तक कि खेलने कूंदने तक का रुटीन पूरी तरह गड़बड़ा गया था जो अब धीरे धीरे सुधर रहा है।
ऑनलाइन क्लास से ज्यादा सहज-सरल आफलाइन स्टडी
कोरोना काल में भले विकल्प के तौर पर ऑनलाइन क्लासेज की शुरुआत की गई, लेकिन वास्तविकता ये है कि ज्यादातर स्टूडेंट्स ऑनलाइन क्लासेज के कारण टेंशन में रहे। कभी इंटरनेट इशू तो कभी स्मार्ट फोन का एवेलबेल न होना। कहीं-कहीं तो वर्किंग पेरेन्टस के लिए भी ऑनलाइन क्लासेज सिर दर्द बनीं। ऑनलाइन क्लासेज को “भागते भूत की लंगोट” वाली संज्ञा दे सकते हैं, क्योंकि उस वक्त स्टडीज को रोकने से बेहतर था किसी तरह जारी रखा जाए, लेकिन इसे एक उत्तम विकल्प नहीं कहा जा सकता। ऐसे अभिभावक जो आर्थिक रूप से अक्षम हैं, उनके लिए ऑनलाइन क्लासेज बच्चों को मुहैया कराना बेशक टेढ़ी खीर रहा। ऐसा वक्त जब अधिकतर लोग अपनी रोजी गंवा चुके थे, घर बैठे स्मार्ट फोन और उस पर हाई स्पीड इंटरनेट सुविधा, बहुत से गरीब परिवारों के लिए मुश्किल था, बेशक ऐसे अभिभावकों ने स्कूल खुलने के बाद राहत की सांस ली होगी। ऑफलाइन स्टडीज में बच्चों का टीचर्स से जो इंटरेक्शन होता है वो ऑनलाइन क्लासेज में उतना सक्षम नहीं रहा। बहुत से छात्रों नो पढ़ाई को काफी हल्के में लिया तो बहुत से छात्र ऐसे भी रहे जो ऑनलाइन क्लासेज की वजह से ही मेंटली ओवर बर्डन हुए।
ऑनलाइन क्लासेज- टीचर्स की मेहनत वही, पर लाभ उतना नहीं
इसमें कोई शक नहीं कि ऑनलाइन क्लासेज में टीचर्स ने उतनी ही मेहनत की, बल्कि शायद उससे कहीं ज्यादा की है जो एक अध्यापक छात्रों को स्कूल में पढ़ाते वक्त करता है, लेकिन हकीकत ये है कि टीचर्स की उस मेहनत के कमतर आंका गया। पेरेन्ट्स ने भी ऑनलाइन पढ़ाई को हल्के में लिया और बहुत से निजी स्कूलों में पूरी शिद्दत से पढ़ाने के बाद भी टीचर्स पूरी तन्ख्वाह से वंचित रहे। बहुत से अभिभावकों ने पैसे की बचत के लिए नए सेशन की बुक्स लेना भी पैसे की फिजूल खर्ची समझा, और किताबों के अभाव में बच्चों की वो पढ़ाई नहीं हो सकी, जो स्कूलों में होती थी। इतना ही नहीं बहुत से स्टूडेंट्स ने भी ऑनलाइन क्लासेज में मिलने वाले होमवर्क को वो तवज्जो नहीं दी जो स्कूल में पूरा करके ले जाना अनिवार्यता थी। स्कूल मैनेजमेंट के निर्देशों पर टीचर्स ने ऑनलाइन क्लासेज में वो अनुशासन बरकरार रखने में पूरी निष्ठा दिखाई जो स्कूलों में होता है लेकिन अपने घरों में आजाद माहौल में इन ऑनलाइन क्लासेज को अटेंड करने वाले छात्र कहीं कहीं उस अनुशासन से डगमगाते दिखे। फिर ऐसी शिक्षा का क्या लाभ जहां शिक्षक तो चिंतित है लेकिन शिक्षार्थी नहीं।
उत्तम विकल्प नहीं ऑनलाइन क्लासेज
कुलमिलाकर ये कह सकते हैं कि जैसे ध्यान बिना भगवान नहीं मिलते, ठीक वैसे ही शिक्षा के मंदिर स्कूलों तक पहुंचे बिना शिक्षा को सुचारू रखना संभव नहीं। एक विद्यार्थी व अभिभावक शिक्षा को लेकर तभी पूर्णत गंभीर होते हैं जब छात्र नियमित रूप से विद्यालय पहुंचें और अपनी पढ़ाई पूरी करें। वहीं टीचर्स भी बच्चों की कमियां और खूबियां तभी देख पाते हैं जब वह नियमित छात्रों से मिलें और उनकी दुविधाओं व शंकाओं को सामने बैठकर सुलझाएं।
कोरोना महामारी ने हमें ये जरूर सिखाया कि हर परिस्थिति में हर काम को चलायमान रखने के लिए हम अपनी आधुनिक तकनीकों से विकल्प तलाशने में पूरी तरह सक्षम हैं लेकिन हर विकल्प पूरी तरह वास्तविक चीज की क्षतिपूर्ति करेगा ये संभव नहीं। स्कूल खुलने के बाद बच्चों के चेहरों पर जो खुशी, उत्साह और परीक्षाओं को लेकर गंभीरता दिख रही है वो अब तक चली ऑनलाइन क्लासेज में मिसिंग थी।