स्मिथा सिंह, नई दिल्ली
आसान शब्दों में समझिए पूरा विषय, ताकि शेयर करने से पहले आप जान पाएं विज्ञापन और मूलभूत में फर्क
हर तकनीक की खूबियां और खामियां होती हैं, उसी तरह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल जानकारियों के विस्तार के साथ साथ विभिन्न प्रकार की भ्रामकता फैलाने के लिए भी तेजी से हो रहा है, इन्हीं सब पर शिकंजा कसने के लिए सरकार अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़ी विभिन्न शाखाओं को लिए कुछ नियम व दिशा निर्देश तय कर रही है ताकि एक सामान्य यूजर असली नकली में अतंर को समझ सके। साथ ही कुछ गलत नजर आने पर शिकायत के साथ
समस्या का तत्काल निवारण भी हो सके। इसी कड़ी में Advertising Standards Council of India (ASIC) ने social media influencer के लिए guidelines तैयार की हैं, आईये इस विषय को समझने के लिए आपको ASIC और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के बारे में बताते हैं।
किसान आंदोलन से जुड़ा ग्रेटा तनबर्ग टूलकिट मामला तो आपको मालूम ही होगा। सोशल मीडिया पर ग्रेटा द्वारा शेयर की गई इस टूलकिट ने ऐसा बवाल मचाया कि एफआईआर से लेकर गिरफ्तारी तक इस संबंध में हुईं हैं। कहा गया कि
ग्रेटा को इसके लिए पैसे दिए गए हैं, ये भी कहा जा रहा है कि भारत में हिंसा फैलाने के लिए इस कागजी हथियार को तैयार किया गया, साथ ही और भी कई तरह के विवाद इस टूलकिट को लेकर पनपे हैं। लेकिन ऐसे में एक साधारण यूज़र, जो सिर्फ जानकारियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है, वो कैसे पहचाने कि कौन सा कॉन्टेंट प्रमोशनल है, और कौन सा वास्तविक यानि सिर्फ जानकारियों के विस्तार के लिए साझा हुआ है। वैसे किसी भी साधारण यूजर के लिए इस फर्क को समझ पाना टेढ़ी खीर है क्योंकि सोशल मीडिया पर पेड पोस्ट और प्रमोशलन कॉन्टेंट की भरमार रहती है, धीरे-धीरे इसकी पूरी एक इंडस्ट्री डेवलप हो चुकी है।
मिलियन व्यूज, लाइक्स और शेयर के इस खेल में कोई लाखों कमाता है तो कोई इस कॉन्टेंट के पीछे के गेम को पूरी तरह समझने में अज्ञानी साबित होता है, लेकिन ASIC अब इसे पूरी तरह पारदर्शी बना रही है अपने नए दिशा निर्देशों
के माध्यम से, ताकि एक आम यूजर प्रमोशनल कंकेंट और जेनुइन कंटेट में फर्क कर, उसी मुताबिक प्रतिक्रिया दे सके।
ASCI है क्या ?
ASCI यानि एडवर्टाइजिंग स्टेंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया एक ऐसी संस्था है जिसे साल 1985 में विज्ञापनों में सेल्फ रेगुलेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाया गया, ताकि विज्ञापनों के जरिए प्रोडक्ट का प्रमोशन करने वाली कंपनी, हवा-हवाई दावे कर लोगों को गुमराह न कर पाए। यदि आपको किसी विज्ञापन में कहीं भी ऐसी किसी खामी का अंदेशा या विश्वास होता है तो इसके लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इसके लिए सभी टीवी चैनल्स को एक एडवायजरी जारी कर कहा है कि ASCI के वॉट्सऐप नंबर 7710012345 को स्क्रीन पर स्क्रोल करें। यदि व्यूवर किसी विज्ञापन में कुछ भी ऐसा देखता है जिस पर उसे आपत्ति है तो इस नंबर पर शिकायत दर्ज करा सकता है।
कौन हैं सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स
अब समझिए सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स कौन होते हैं जिनके लिए एएससीआई ने निशानिर्देश बनाए हैं। इस शब्द को आप यूट्यूब के उदाहरण के साथ समझ सकते हैं, आप यूट्यूब पर ऐसे सैकड़ों चैनल्स देखते हैं जिनके वीडियोज को लाखों लाइक्स और व्यूज मिलते हैं। जब इनके अच्छे खासे सब्सक्राइबर्स हो जाते हैं तो इन चैनल्स पर प्रमोशन का दौर शुरु होता है। इन्हें ही सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स कहते हैं। अक्सर प्रमोशनल कंपनीज ऐसे ही इन्फूएंसर्स की तलाश में रहती हैं जिनको पैसे देकर वे अपने प्रोडक्ट व ब्रांड का प्रमोशन करा सकें। ये खेल सिर्फ यूट्यूब पर नहीं बल्कि हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चलता है। इसलिए एक साधारण यूजर के लिए विज्ञापन और जानकारी में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। आप यदि एक साधारण यूजर हैं तो ये जान ही नहीं पाएंगे कि जिसे आप फॉलो कर रहे हैं वो पेड कंटेंट दिखा रहे हैं या वास्तव में जन जागरण के उद्देश्य से तारीफ की जा रही है। बस इसी फर्क को साथ साथ देखा जा सके इसके
लिए ASCI यानि एडवर्टाइजिंग स्टेंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया ने दिशा निर्देश तैयार किए हैं।
ASCI ड्राफ्ट गाइड लाइन्स 10 बिंदुओं में जारी की गई हैं, जिनमें ये साफ कहा गया है कि इन्फ्लूएंसर्स को ये बताया होगा कि पोस्ट, पिक्चर या कंटेंट जैनरिक है या फिर प्रमोशनल। जिसे दर्शाने के लिए इन्फ्लूएंसर्स को टेक्स्ट,फोटो,ऑडियो,वीडियो हर तरह के कंटेट की लेबलिंग करनी होगी।
सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के इन्फ्लूएंसर्ज पर लागू होने वाले ये दिशानिर्देश इस प्रकार हैं-
1- सोशल मीडिया यूजर को जानकारी होनी चाहिए कि पोस्ट या कॉन्टेंट मूलभूत है या विज्ञापन आधारित
2- अगर विज्ञापन आधारित कंटेंट है तो कंटेट के शुरुआत में ही ये साफ किया जाना चाहिए।
3- विज्ञापन का लेवल इंग्लिश या विज्ञापन की भाषा में हो, जिससे कि खबर रहे कि वो एक प्रमोशनल कंटेट है
4- इन्फ्लूएंसर के प्रोफाइल में प्रमोशनल कंटेट बताना काफी नहीं होगा
5- अगर पोस्ट इंस्टाग्राम या स्नेपचैट पर डाली जा रही है तो पिक्चर पर लेवल लगाकर बताया होगा कि पोस्ट प्रमोशनल है
6- अगर कंटेट ऑडियो में है तो कंटेट के ओपनिंग-क्लोजिंग में क्लीयर करना होगा कि वो प्रमोशलन कंटेंट है
7- सोशल मीडिया फिल्टर का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। खासकर तब जब कंटेट में फिल्टर का इस्तेमाल अपने दावे को इफेक्टिव साबित करने के लिए किया जा रहा हो, उदाहरण के लिए बालों को चमकदार या दांतों को एकदम सफेद
दिखाना।
8- यदि विडियो में टेक्सट यानि शब्द नहीं लिखे गएं हैं तो भी प्रमोशनल लेवल व्यूवर को नजर आना चाहिए और 15 सैकेंड या इससे छोटे वीडियो में लेबल की ड्यूरेशन कम से कम 2 सैकेंड होनी ही चाहिए। वहीं 2 मिनट तक के वीडियो में
वीडियो के एक तिहाई हिस्से पर लेबल होना चाहिए और अगर वीडियो की ड्यूरेशन दो मिनट के ऊपर है तो पूरे वीडियो में लेवल लगा होना चाहिए और वीडियो की लाइव स्ट्रीमिंग में हर मिनट के आखिरी 5 सैकेंट में लेबल नजर
आए।
9- इन्फ्लूएंस को ये भी ध्यान रखना होगा कि वह उत्पाद को लेक जो दावा कर रहा है वो साफ नजर आए, बगैर किसी फिल्टर के।
10- इन्फ्लूएंसर को विज्ञापन कंपनी से ये साफ करना होगा कि दिए जा रहे प्रमोशनल कंटेट में बिना किसी फिल्टर का इस्तेमाल किए साफ-सटीक जानकारी ही दिखाई-समझाई जाएगी। ये दिशा निर्देश 15 अप्रैल से लागू होंगे जिसके बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर डाला जाने वाला कंटेंट पूरी तरह पारदर्शी हो जाएगा यानि एक साधारण यूजर जैनरिक और प्रमोशनल कंटेंट को पहचान सकेगा और फिर अपनी समझ व संतुष्टि के मुताबिक की कंटेट को लाइक और आगे शेयर करेगा। ये ड्राफ्ट गाइडलाइन्स अभी इसलिए जारी की गई हैं ताकि इंडस्ट्री, डिजिटल इन्फ्यूएंसर्स, क्ज्यूमर्स और स्टेक होल्डर्स इन पर 8 मार्च तक अपना फीडबैक दे सकें।इसके बाद फीडबैक के आधार पर 31 मार्च 2021 से पहले पहले ASIC इस दिशा में फाइनल गाइडलाइन्स जारी करेगी। और 15 अप्रैल के बाद पोस्ट व पब्लिश होने वाले हर कंटेट के लिए इन्हें फॉलो करना होगा।